सारे आतंकी जिंदाबाद


रोहित धनकर
मैं उन लोगों से पूरी तरह सहमत हूँ जो याकूब मेमन को फांसी देने के विरोध में हैं. और मेरे पास चारा ही क्या है? मेरे सभी परिचित और दोस्त ऐसा कहते हैं. और जो सब बोलें वही सही.
कुछ लोग इस भ्रम में थे कि दंड न्यायालय के फैसलों के अनुसार दिया जाता है और भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने याकूब के अपराध को फांसी के काबिल माना है. यह गलत निकला, दंड तो मीडिया में हल्ले-गुल्ले और समाज के मोतबीर लोगों की राय के मुताबिक होना चाहिए. आगे से सर्वोच्च न्यायलय को मोतबीर लोगों की राय पहले लेलेनी चाहिए.
कुछ सिर-फिरे लोग समझते हैं कि दो गलत मिलकर एक सही नहीं बनाता. पर वे बुद्धू हैं. यदि भुल्लर की फांसी में टालम-टोल की जाती है तो मेमन को भी यही सुविधा मिलनी चाहिए. यह नहीं कि भुल्लर के मामले में भी ऎसी कोताही न की जाए. यदि एक को फांसी नहीं दी तो दूसरे को भी मत दो. तभी तो अपने घोटालों को जायज शाबित करने के लिए बीजेपी कांग्रेस के घोटाले संसद में गिना रही है. तुमने किये तो हमने भी किये.
अब हम मान गए जब तक सारे अपराधियों को दंड ना मिले किसी को भी नहीं मिलना चाहिए. नहीं तो निश्चित रूप से यह उस से धार्मिक दुर्भावना के आधार पर ही होता है. और यह तो सर्वमान्य सिद्धांत है ही कि सब को अपने-अपने धर्म के अपराधियों और आतंकियों को बचाने की कोशिश करनी चाहिए. हिन्दुओं को जी तौड़ कोशिश करनी चाहिए किसी भी दंगाई और हिन्दू आतंकी को सज़ा नाहो. सिखों को भुल्लर को फांसी नहीं होने देनी चाहिए. और मुसलामानों को याकूब को बचाना ही चाहिए. जो लोग धार्मिक भेद-भाव नहीं करते उनको सभी आतंकियों को बचाने की कोशिश में मदद करनी चाहिए. तभी यह साबित होगा कि वे धार्मिक भेदभाव से ऊपर हैं.
कुछ लोगों का मानना था कि अपराधियों के साथ पुलिश और अदालत को कोई समझौते नहीं करने चाहियें. पर अब समझ में आ गया की लेन-देन का काम तो भारतीय संस्कृति का हिस्सा है. तो २५७ लोगों को मारने की योजना भाई लोगों के साथ मिलकर बनाओ, उस पर अमल की व्यवस्था करो और पकड़े जाओ तो अपनी ही उपलब्धियों को बता कर दंड से मुक्ती भी पालो. हिसाब एकदम ठीक है. इतना सीधा तर्क भी हमारी बुद्धी में इतनी देर से घुसा.
मृत्यु-दंड बुरी बात है. नहीं देना चाहिए किसी को. पर यह सुनहरा सिद्धांत हमें तभी याद करना चाहिए जब किसी आतंकी को फांसी मिलने वाली हो.
हम सभी जानते हैं, और अब तो रवीश जी जैसे गंभीर टीवी पत्रकार ने भी फरमा दिया है, की सर्वोच्च न्यायालय सामूहिक चेतना की संतुष्टी के लिए ही तो फैसले देता है. अफजल गुरु का और कोई दोष थोड़े ही था. यह बात अलग है की न्यायालय ने बहुत सूक्षम तर्क करने में ८० पृष्ट लगाए हैं, फैसला उन तर्कों और साक्ष्यों के आधार पर दिया है और सामूहिक चेतना की बात इस के बाद की है. पर इतना लंबा फैसला कौन पढ़े. जब मोतबीर लोग कहते हैं कि बस सामूहिक चेतना की संतुष्टी ही असल कारण था तो उसे नकारने वाले हम कौन होते हैं?
हम आतंकी हमलों को रोकने की कोशिश करें या ना करें आतंकियों को दंड से बचाने की कोशिश जरूर करनी चाहिए. और फिर आतंकी हमले तो उन पर समाज द्वारा किये गए अन्यायों का विरोध प्रदर्शन भर हैं, लोगों को अन्याय का प्रतिकार करने की छूट तो होनी ही चाहिए. यह देखना हमारा काम थोड़े ही है कि यह अन्याय-प्रतिकार की श्रृखला भूत काल में कहाँ तक जाती है. और आगे कहाँ तक जा सकती है.
ओवैशी साहेब एकदम ठीक हैं. यह फांसी केवल इस लिए हो रही है कि याकूब मेमन मुसलमान है. और जो इस बात को नहीं मानते वे सांप्रदायिक मुसलिम विरोधी लोग हैं. दूसरी तरफ संघी हैं. यदि कोई कैसा भी तर्क उनके विचारों के विरूद्ध दे तो देशद्रोही है. तो आम जन के पास दो ही रास्ते हैं: या तो सांप्रदायिक मुसलिम विरोध का कलंक लेलो या फिर देशद्रोह का. नहीं तो बस चुप रहो, बोले और गए काम से.
ठहर कर, सोच कर और तर्क से बात करना बिलकुल फालतू की चीज है. विचार तो भावना और उस वक्त के फैशन के आधार पर बे-तरतीब आने की चीज हैं. वे ही तो सच्चे और ऑथेंटिक विचार होते हैं. जो भावना और फैशन का विरोध करते हैं वे अपनी चलाना चाहते हैं, तर्क तो सच्चे विचार को मार ही देती है. और भावना तो हमारे गुरुओं ने अपने वक्त के आइडीओलोजिकल फैशन के अनुशार जो बनादी सो बनादी. अब क्या है. कोई अपने भूत से बहार निकल कर थोड़े सोच सकता है. जो ऐसे दावे करते हैं वे या तो कम-अक्ल हैं या फिर ताकत के गुलाम. संवेदन-शील सोचने वाला तो वही होता है जो तर्क को दूर रखे. बड़ी खराब चीज है, सारा अन्याय इसी मेंसे निकलता है.
अतः मैं इन सब बातों को सही मानता हूँ और याकूब की फांसी के पूरी तरह से विरोध में हूँ. और अब अगली बार मानवीयता के पक्ष और मृत्यु-दंड के विरोध की बात तब करूंगा जब किसी और २००-४०० लोगों को मारने में मदद करने वाले को फांसी की बात चलेगी. नहीं तो ऎसी बातों का उपयोग ही क्या है.
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अब कुछ बातें गंभीरता से:
१. मेरा यह मानना है की मृतु-दंड न्याय प्रक्रिया में रखें या नहीं इस पर गंभीरता से बिना किसी विशेष क्यक्ति के मृतु-दंड से जोड़े विचार होना चाहिए.
२. न्यायालय के फैसलों का सम्मान होना चाहिए, सभी अपराधियों और आतंकियों के मामले में समान रूप से.
३. किसी मामले में सम्मान नहीं हुआ तो उसका विरोध होना चाहिए, न कि उसे और मामलों में साम्मान न करने का जरिया बनाया जाए.
४. मैंने सूना है की ३० जुलाई मेमन का जन्म-दिन है. यदि ऐसा सच में है तो सरकार सरकार को इसी दिन को फांसी के लिए चुनने का खुलासा करना चाहिए, और उसके पास इस के लिए कोई ठोस करण हिने चाहियें. नहीं तो यह हद दर्जे की निकृष्टता है.
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8 Responses to सारे आतंकी जिंदाबाद

  1. Anonymous says:

    रोहित जी, धृष्टता के लिए क्षमा करें । आप जब भी कटाक्ष करते हैं तो लेखनी में गजब की धार आ जाती है । कानों का बरसों से जमा मैल साफ हो जाता है । कृपया ऐसा और लिखा करें ।

    अंशुमाला

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  2. Anonymous says:

    Aap bhi kataksh kar rahi hain kya? Is men dhrishta kahan huii? Rohit

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  3. Anonymous says:

    Pahli baar hindi bhasha dekh kar poora hi lekh padh liya ……. Aapke english article s me to do 2-3 kadam ke baad hi hum ladkhada jaate the…. vishleshnatamak lekh h. Thanks for hindi writing,, Sheesh Pal

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  4. SHAKEEL ASHRAF says:

    I liked the write up to a great extent.

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  5. Anonymous says:

    बहुत खुबसुरत व्यंग लिखा ,अंधेर नगरी नाटक की याद आ गयी

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  6. seraj says:

    Rohit ji, aap ne bahut khub likha phir bhi bahut kuch janna baqi rah gaya hai usay bhi janne ki koshis kijie tabhi asliat ka pata chalega.
    1. Bharti hukumat, nyayalay ko phansi ki ahmiat sirf muslim mujrim ke samne hi kyon nazar aati hai, aur dusre khatarnak criminal jo saikron logon ko marwaya lekin unke muslim naam na hone se hi usnki masumiyat kyon jhalak jati hai.
    2. aap ko aur likhne ke liye un judge, wakeel, budhijiwi jo sari zindagi qanun padha, samjha, aur amal kiya unke khyalat ke piche ke karno ko samajhne ki koshis kijie ki wah kyon phansi ke khilaf hai.
    3. bomb blast mumbai ke fasad ke baad uske badle ke liye hua, galat hua, sarkar, nayayalay har tarah ke nainsafi ke liye hai, hazaron muslim ko nyayalay ke faislay ka intezar karna chahie, yakub ko bhi, lekin yah bat kisi bhi insan ko samajh me nahi aayi ki fasad jisme hazron log din raat kyi din tak shamil rahe, kayi dino tak hazaron logon ko mare, saman luta, jalaya, rape kiya uska faisla kyon nahi aaya aur kuch chand sarfire ka bomb phorna, jisem ksi ne koi lootpat nahi kiya, kuch jalaya nahi, rape nahi kiya aur log bhi kam mare us ke faisle pahle kyon aaya, aur aap ke sare jawabon ke liye ek jawab de doon, ki mumbai fasadion ko kabhi saza milegi bhi nahi, ab aap is par thora sochon ki unko saza kyon nahi milegi.
    4. aakhir sare fasadion, fake encounter karne walon ke khilaf police ko sabut kyon nahi milte, kya yah sarkar, police, agency, wakilon aur jadgon ki mili bhagat nahi hai, jo sabut ko khatm kiya jata hai, aakhir fasadion ka sabut jinke video, audio, chashmdeed gawah maujud hote hain phir bhi nayayalay ko nahi dikhta, aakhir aise khatarnak jurm jo jhund ki shakl me ek sath hazaron log saikron logon ko janwar ki tarah jala, rape kar marte hain, jo ki bharat ke alwaya sansar me kahin nahi hota, aatanwadi bhi kuch gine chune hote hain, hazaron ki bheer nahi hoti. aakhir aise wahsi kamon ke sabut ki zimmedari yuganda ki hukumat ki hai ya bharit hukumat aur police ki hai.
    aap itne bhole to nahi hoge, ki unke khilaf sabut barish aane ki wajah se dhul jate hain, aur police ko kuch nazar nahi aata.
    insaf, bheer aur tadad nahi dekhti, merit dekhti hai, aur bharat me aaj yah miss ho raha hai, bheer dekh rahe hain upar se niche tak merit nahi.

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  7. Anonymous says:

    Hindu madarchod

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