विद्यालय प्राचार्य की नोट-बुक १


रोहित धनकर

हजारी प्रसाद द्विवेदी को किसी ने ‘अनाम दस का पोथा’ की पांडुलिपी डाक से भेज दी और और उनहों ने उसे प्रकाशित कर दिया. डेनिश दार्शनिक किर्केगौर को अपनी एक पुरानी लिखने की डेस्क की गुप्त ड्रावर में ‘आइदर/ऑर’ की पांडुलिपी मिली और उन्होंने उसे प्रकाशित कर दिया. ईर्ष्या करने के लिए तो इन दोनों में और मेरे में बहुत बड़ा अंतर है योग्यता और बुद्धीमत्ता का. पर मुझे यह जरूर लगता रहा है कि उनको इतनी बढ़िया किताबें लिखी-लिखाई तैयार मिल गई, और बस प्रकाशित भर करने से उनके लेखन में चार चाँद लग गए. मुझे ऐसा सुअवसर ना मिलाने का मन में दुःख जरूर रहा. विचार उस जमाने की बात है जब मेरे पास पढ़ने को समय अधिक और किताब खरीदने को पैसे नहीं के बराबर होते थे. बहुत साल हो गए अब तो साहित्य पढ़ने के लिए कोई न कोई जरूरी काम छोड़ कर अपराध-बोध के साथ कुछ घंटे निकालने पड़ते हैं.

पर हजारी प्रसाद द्विवेदी और सोरेन किर्केगौर के प्रती मेरे पुराने विचार की याद आने का एक अवसर बना, और मुझे ‘अनामदास का पोथा’ या ‘आइदर/ऑर’ जैसी जबरदस्त चीज तो नहीं मिली; पर कुछ मिला जरूर. एक बार मैं बैंगलोर से दिल्ली जा रहा था. बैंगलोर में हवाई-जहाज में अपनी निर्धारित जगह पर जा कर बैठ गया और आईपैड पर कुछ पढ़ने लगा. हवाई-जहाज उड़ान भरने को तैयार हुआ और यात्रियों को अपने इलेक्ट्रोनिक उपकरण बंद करने का निर्देश मिला. मैंने अईपैड बंद की और सामने की सीट के पीछे की जेब में उसे रखने लगा. तो देखा वहां काले जिल्द वाली एक नोट-बुक रखी है. यह किसी यात्री की छूट गई लगती थी. मैंने नोट-बुक निकाली और अईपैड जेब में रख दिया. सोचा नोट-बुक एयर-होस्टेस को देदूंगा, शायद वह इसे उसके मालिक तक पहुंचा सके. तब तक हवाई-जहाज उड़ान भरने लगा था, अब मैं डायरी उड़ान-भरने के बाद ही एयरहोस्टेस को देसकता था. तो वैसे ही उसके पन्ने पलटने लगा.

यह एक विद्यालय के प्राचार्य (प्रिंसिपल) की नोट-बुक थी. नोट्स बहुत व्यवस्थित तरीके से तारीखें लगा कर और साफ़ एवं सुन्दर हस्तलेख में लिखे गए थे. अधिकतर उनकी शिक्षकों, शिक्षा-अधिकारियों आदी से बठकों के विवरण थे. पर ऐसा नहीं लगता था कि ये नोट्स बैठकों के दौरान लिए गए हों. भाषा का इतना सधा होना और लेख का इतना सुन्दर होना बैठकों में जल्दी-जल्दी लिए जाने वाले नोट्स में संभव नहीं लगता था. शायद प्राचार्य जी कोई रफ नोट्स बठकों में लेते हों और उनको फुर्सत में व्यवस्थित करके लिखते हों.

जो भी हो, इन में बहुत से नोट्स शिक्षा में काम करने वाले लोगों के लिए दिलचस्प थे. मैंने प्राचार्य महोदय का नाम आदि नोट-बुक में देखने की कोशिश की. पर न तो उन के विद्यालय का कहीं कोई संकेत था और नाही उनका नाम कहीं लिखा था. तो हम उनको इस संपादित पांडुलिपी में भोलानाथ कहेंगे, ये उनका असली नाम नहीं है. खैर, मैं पूरी यात्रा में यह नोट-बुक पढ़ता रहा. पहले पहले कुछ अपराध-बोध के साथ कि किसी और के नोट्स पढ़ रहा हूँ बिना उसकी इजाजत के. पर उनमें कुछ भी व्यक्तिगत और गोपनीय जैसा नहीं था. बस शिक्षा पर विचार और विद्यालय के बारे में निर्णय और योजनायें. इन निर्णयों, बैठकों, योजनाओं के आधार पर ही मैंने यह अनुमान लगाया की नोट-बुक के मालिक कोई विद्यालय प्राचार्य हैं.

दिल्ली पहुँचाने पर मैंने नोट-बुक एयरहोस्टेस को देने के बजाय उससे एयरलाइन के कार्यालय का पता पूछा और उन से जानने की कोशिश की यह हवाई-जहाज पहले किस फ्लाइट पर था और मेरी सीट पर मेरे तुरंत पहले कौन बैठा था. ये कोई कपड़े के व्यापारी निकले. एयरलाइन कर्मचारी ने उनसे फोन पर पूछा कि क्या उनकी कोई नोट-बुक यान में छूट गई थी? उन्हों ने किसी नोट-बुक के छूटने से इनकार किया. मैं अपना पता एयरलाइन कार्यालय में लिखवाकर होटल चला गया और नोट-बुक अपने पास ही रखी. इस बात को लगभग डेढ़ साल बीत चुका है. बीच में कई बार एयरलाइन से नोट-बुक के मालिक के बारे में पूछा, पर सब निरर्थक. कुछ पता नहीं चला.

इस नोटबुक में मुझे बहुत कुछ ऐसा लगता है जो शिक्षा पर विचार और शिक्षा में काम करने वाले लोगों से साझा करना चाहिए. यही सोच कर नोट-बुक के कुछ अंश, भोलानाथ जी को आभार सहित यहीं साझा कर रहा हूँ. पहली क़िस्त हाजिर है.

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[यह क़िस्त एक संवाद के रूप मैं है. मैं उसे यहाँ जस-की-तस दे रहा हूँ, इस में मेरा कुछ नहीं है. बस जहाँ जहाँ नोट-बुक में “मैं” था वहाँ मैंने “भोलानाथ” कर दिया है.—रोहित]

गुणवत्ता: श्रीमती खत्री से संवाद (२३ जुलाई २०१३)

हमारे वर्त्तमान शिक्षा-सचिव की विद्यालयों की गुणवता सुधारने में बहुत रुची है. इसके लिए वे लगातार उपनिदेशक से आग्रह करते रहते हैं और विभिन्न योजनायें सुझाते रहते हैं. इसी क्रम में लग-भाग एक सप्ताह पहले उन्होंने उपनिदेशक साहब को आदेश दिया की राजधानी के बहुत महंगे और बहुत प्रसिद्द विद्यालय की प्राचार्य महोदया श्रीमती खत्री को उन्हों ने हमारे शहर विशेष रूप से बुलाया है. उनके विद्यालय को बहुत अच्छा विद्यालय माना जाता है और श्रीमती खत्री को बेहद बढ़िया प्राचार्या. वे यहाँ उच्चाधिकारियों को विभिन्न योजनाओं में सलाह देने के लिए बुलाई गई हैं. २३ जुलाई की संध्या को उन से हमारी बात-चीत के लिए समय रखा गया है. उपनिदेशक साहब और कोई अच्छे समझे जाने वाले सरकारी विद्यालयों के ३-४ प्राचार्यों को २३ जुलाई को शाम ६ बजे उनके होटल पहुंचाना हैं. योजना यह है कि हम ६ से ८:३० तक उनसे अपने विद्यालयों की गुणवत्ता सुधारने पर सलाह लेंगे. हमें इस बात-चीत के आधार पर अगले एक सप्ताह में कोई योजना अपने-अपने विद्यालयों के किये बना कर सचिव महोदय से मिलना है.

आदेशानुसार हम लोग ६ बजे उपनिदेशक साहब के नेतृत्व में होटल पहुंचे. मैं (भोलानाथ आर्य), श्री शर्मा, सुश्री जैन और श्रीमती सिंह शहर के चार सरकारी विद्यालयों के प्राचार्य हैं.

होटल शानदार है. हमें श्रीमती खत्री के कमरे के सामने चौड़े और एकांत बरामदे में एक चाय की टेबले के इर्द-गिर्द रखी कुर्सियों पर बैठाया गया. जैसे ही हमने कमरे की घंटी बजाई श्रीमती खत्री तुरंत आगईं. आते ही हम सबने अभिवादन किया और अपना-अपना परिचय दिया. श्रीमती खत्री ने चाय, कोफ़ी या शीतल पेय के ले लिए पूछा. हम सभी ने चाय लेना चाहा. उन्हों ने रूम-सर्विस को छः चाय और तीन प्लेट पनीर पकोड़े लाने का आदेश दिया और बात-चीत करने हमारे साथ बैठ गईं. वे अपने पहनावे और व्यवहार से बहुत आत्मा-विश्वासी और कार्यकुशल महिला लग हरी थीं. इनके व्यक्तित्व में एक अधिकार-भाव और चुस्ती थी जो हम सब में कुछ गायब-सी थी. यहाँ तक की उपनिदेशक साहब भी कुछ शिष्य-भाव में लग रहे थे आज.

श्रीमती खत्री: गुता जी, (यह हमारे उपनिदेशक साहब का नाम है) सचिव मोहदय ने मुझे विद्यालय गुणवत्ता सुधारने के बारे में आप लोगों को कुछ टिप्स देने के लिए कहा है. उसपर आने से पहले मैं कुछ अपने और अपने विद्यालय के बारे में बतादूँ. आज मेरा विद्यालय राजधानी के टॉप विद्यालयों में हैं. जब ८ साल पहले मेरी नियुक्ति मनेजमेंट ने कि थी तो विद्यालय में केवल ७७ बच्चे थी, आज २२०० हैं. प्रवेश के लिए भीड़ लगी रहती है सत्र के आरम्भ में. बड़ी बड़ी सिफरिसें आती हैं. मनेजमेंट ने फीस तीन गुना बढ़ादी है. यह सब मैंने विद्यालय को बेहतर बनाने की जो योजनायें बनाई उनका नतीजा है. मेरे काम करने के तरीके का नतीजा है. मुझे अपने विद्यालय को टॉप पर पहुंचाना है.

श्रीमती जैन: मेडम, हम भी अपने विद्यालयों को बेहतर बनाना चाहते हैं. पर हमारे पास साधन कम हैं, और योजनायें भी हमें विभाग के निर्देशानुशार ही बनानी होती हैं.

उपनिदेशक: अब आपको सब साधन दिए जायेंगे और योजना भी आप अपनी बना सकते हैं. इसी लिए तो हम श्रीमती खत्री से बात करने आये हैं कि कैसी योजना बनाएं. बस योजना बना कर सचिव साहब से इजाजत लेनी होगी. वे चाहते हैं की हमारे विद्यालय निजी विद्यालयों की तरह उच्च-गुणवत्ता वाले हों.

श्रीमती खत्री: आप में से कितने जानते हैं की गुणवत्ता का क्या आर्थ होता है?

(श्रीमती खत्री ने हम सब की तरफ देखा, कुछ चुनौती भारी नजर से.)

शर्मा जी: मेडम गुणवत्ता माने अच्छी पढ़ाई और बेहतर परिणाम.

श्रीमती खत्री: यह तो सभी जानते हैं, शर्मा जी. जब मैं अपने शिक्षकों को गुणवत्ता के लिए प्रेरित करती हूँ तो कहती हूँ कि पढ़ाते तो सभी हैं. रिजल्ट तो सभी चाहते हैं. गुणवत्ता तो वह चीज है जो आप अतिरिक्त दें, जो आम है उससे ऊपर जाकर दें. वही अतिरिक्त आपकी पहचान बनाती है. आपकी यूएसपी (USP: यूनिक सेल्लिंग पॉइंट) बनाती है. उसी से आप टॉप पर पहुँचते हैं. तो मैं शिक्षकों से कहती हूँ की आप को मेरे स्कूल में कुछ अलग, कुछ अपने काम से अतिरिक्त, देना होगा. इसी से हम प्रतिश्पर्धा में आगे रह पायेंगे.

भोलानाथ: पर मेडम, रिजल्ट भी तो जरूरी है?

श्रीमती खत्री: बिलकुल, रिजल्ट तो जरूरी है ही. इसी लिए तो हम उन्ही बच्चों को लेते हैं जो अच्छे घरों से आते हैं. हम जितना अच्छा परिणाम चाहते हैं, टॉप पर रहने के लिए, उसमें बहुत मेहनत लगती है. निम्न वर्ग के बच्चों में न तो वह मोटिवेशन होता है, ना ही अनुशाशन जो जिससे वे इतनी मेहनत क्र सकें. फिर उनका आईक्यू भी जरूरी नहीं की उस दर्जे का हो. उनके माता-पिता न तो प्रेरणा दे सकते हैं और नाही ट्यूशन करने के लिए उनके पास साधन हैं.

सुश्री सिंह: पर मेडम, परिणाम तो स्कूल में पढ़ाई …..

श्रीमती खत्री: स्कूल में पढ़ाई को हम बहुत उच्चकोटी की रखते हैं. पाठ्यक्रम को तो सितम्बर के आखिर तक पूरा कर देते हैं. उसके बाद दोहरान.

शर्मा जी: बच्चे इतना जल्दी कर लेते हैं मेडम?

श्रीमती खत्री: हमारे स्कूल में चलापाना आशान नहीं है. ऐसे ही हम टॉप स्चूलों में नहीं हैं. जो बच्चे नहीं चल पाते उनके पेरेंट्स को बुला कर ट्यूशन लगवाने को कहते हैं. अच्छे परिवार बच्चों के भविष्य को लेकर बहुत सजग होते हैं, वे तुरंत हमारी सलाह मानते हैं.

शर्मा जी: पर मेडम, हमें तो सभी बच्चे लेने पड़ते हैं. गरीब माता-पिता ट्यूशन नहीं लगवा सकते अपने बच्चों का. और सब बच्चों को प्रवेश देना समाज में बराबरी के लिए भी जरूरी है?

श्रीमती खत्री: हमारे पास भी कई बार ऐसे बच्चे आ जाते हैं. हमने उसका भी तरीका निकाला है. और हम भी एथिक्स (नैतिकता) के मामले में बहुत जागरुक हैं.

भोलानाथ: वह तरीका हमें बताइये, हमारे स्कूल को उसकी बहुत जरूरत है, मेडम.

श्रीमती खत्री: आप में से किसको मालूम है कि फेजिंग (phasing) क्या होती है?

(सब चुप.)

श्रीमती खत्री: फेजिंग का मतलब हैं विद्यालय में बच्चों को उनकी योग्यताओं के अनुसार विभाजित करना. आप बच्चों के समूह बनाइये: आउटस्टैंडिंग, अच्छे, औसत, और सुधार की जरूरत. फिर बच्चों को उनकी योग्यता के अनुसार मदद कीजिए. बहुत अच्छे परिणाम आयेंगे.

श्रीमती जैन: पर क्या बच्चों की लेबलिंग ठीक होगी, मेडम? उनके मन पर बुरा असर नहीं पड़ेगा?

श्रीमती खत्री: मैंने कहा ना हम एथिक्स का बहुत ध्यान रखते हैं. इसी लिए हमने “सुधार की जरूरत” कहा; कमजोर, स्लो-लर्नर, पिछड़े, आदि शब्दों का उपयोग ठीक नहीं है. उनसे बच्चों पर बुरा अशर पड़ता है. और एथिक्स में मूल्यों का बहुत महत्व है.

भोलानाथ: एथिक्स और मूल्यों की बात ठीक से समझे नहीं मेडम.

श्रीमती खत्री: देखिये मैं बताती हूँ आपको. एथिक्स का मतलब होता है मूल्य. हमें बच्चों को मूल्य सिखाने चाहिए.

सुश्री सिंह: मूल्य मेडम? जैसे?

श्रीमती खत्री: बहुत सारे शोध बताते हैं कि नोकरी मिलने में ज्ञान और दक्षताओं का योगदान शिर्फ़ २०% होता है. वह तो आज कल सभी के पास है. काम देने वाला गुणवत्ता देखता है. ज्ञान के अतिरिक्त देखता है. उसके आधार पर काम देता है. और यह गुणवत्ता मूल्यों से आती है.

(हम सब ने, उपनिदेशक साहब सहित, गर्दन हिलाई: जी.)

श्रीमती खत्री: हम बच्चों को जॉब के लिए तैयार करने के लिए शिक्षा देते हैं. आज कल जॉब में एथिक्स बहुत महत्वपूर्ण हो गई है. to get a job you have to be different. काम देने वाला यह देखता है कि तुम अपनी ड्यूटी के अलावा क्या करने को तैयार हो. नया क्या लाते हो. जैसे कम्पटीशन, डिफरेंस, कड़ी मेहनत, कम्पनी को आगे बढाने का जज्बा. हमें यह मूल्य सिखाने होंगे. तभी हमारे बच्चों को प्रतिश्पर्धा में बेहतर जॉब मिलेंगे.

श्रीमती जैन: ये कैसे सिखाएं मेडम?

शर्मा जी: पर मूल्यों में तो सच बोलना, आदर करना, दया, सहयोग, आदि की बात करते हैं लोग.

भोलानाथ: और समानता, न्याय, भाईचारा, स्वायत्तता, संवेदनशीलता, आदि भी लिखे हैं राष्ट्रीय पद्थाचार्य में?

श्रीमती खत्री: (मेरी और शर्माजी की तरफ मुखातिब होकर) ये सब तो हैं ही. ये तो सिखाने ही हैं. पर हम गुणवत्ता की बात कर रहे हैं. गुणवत्ता वह है जो कुछ अधिक दे; कुछ अतिरिक्त दे. और वह प्रतिश्पर्धा, कड़ी मेहनत, कम्पनी के लिए कुछ नया और अद्वित्तीय लाना आदि हैं. हम गुणवत्ता चाहते हैं तो हमें इन पर ध्यान देना चाहिए.

श्रीमती खत्री: (अब श्रीमती जैन को) values are not taught, they are caught. (मूल्य सिखाये नहीं जा सकते, वे अपनाए जाते हैं.)

श्रीमती जैन: पर मेडम, पहले तो आपने कहा …..

श्रीमती खत्री: वो मैं आप लोगों को समझाने के लिए कह रही थी. values are caught, not taught. तो हमें मूल्य देने चाहियें, पढ़ाने नहीं.

भोलानाथ: मैं यह समझा हूँ अभीतक मेडम: कि गुणवत्ता अतिरिक्त जो है वह है. रिजल्ट तो अच्छा करना ही है. उसके लिए अच्छे घरों के बच्चों को उनके परिवार से मदद मिलाती है और स्कूल की तेज गति पढ़ाई (जो अच्छे रिजल्ट के लिए जरूरी है) में मदद के लिए ट्यूशन के लिए कहें. और, जो ट्यूशन नहीं कर सकते इनकी मदद के लिए बच्चों को उत्तम, अच्छा, औसत और सुधार की जरूरत में बाँट. जैसी जिसकी क्षमता उसके अनुशार मदद करें. और अतिरिक्त मूल्यों के रूप में प्रतिश्पर्धा, कड़ी मेहनत, कम्पनी के लिए कुछ नया और अद्वित्तीय लाना आदि बच्चों के मन में स्थापित करें.

श्रीमती खत्री: बिलकुल ठीक भोलानाथ जी. इसके अलावा महत्त्वपूर्ण स्किल्स की भी बात करनी पड़ेगी.

(श्रीमती खत्री से विद्यालय प्राचार्यों की बात-चीत जारी है. स्किल्स की बात आगे.)

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9 Responses to विद्यालय प्राचार्य की नोट-बुक १

  1. Anonymous says:

    Bholanath ji ko salam.

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  2. Sheesh Pal says:

    Very critical………. Its the real picture of our educational administration.

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  3. Inderjeet singh says:

    सटीक

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  4. Rahul sharma says:

    अच्छा तरीका लगा शिक्षा के इस दृष्टिकोण को बताने का , शेष भाग का इंतजार है

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  5. Anonymous says:

    कुछ छुए से और कुछ उनछुये से पलो को स्पर्श कर दिया | शायद यही हकीकत है सरकारी पाठशालाओं के उन सेकड़ो अध्यापको की जो शायद आधुनिक शिक्षा पद्धति को “सो कॉल्ड आधुनिक” तरीके से बाक़िफ़ नही हैं और शायद इस तरीके से नही समझ पा रहे हैं जिस के कारण इस तरीके की आधुनिक रेस से बाहर होते जा रहे हैं और कहीं कहीं तो आलम ये हैं की लड़ाई अपने अस्तित्ब की हो रही हैं… देखते हैं आगे का भाग या यूँ कहे भाग्य ….

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  6. Aruna says:

    🙂 It was fun to read the conversation. Eager to read the next episode.

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  7. महेश पोखरिया says:

    प्रभावशाली तरीका.. यह मोड ज्यादा कारगर लगा. आगामी किस्तों का इंतजार रहेगा…

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  8. […] [प्राचार्य की नोट-बुक में  भाग १ से आगे की बात-चीत जारी है. पिछले भाग में श्रीमती खत्री ने गुणवत्ता का एक खाका खेंचा जिसे भिलानाथ जी ने समेकित करके उन की सहमती ली.अब आगे.—रोहित] […]

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  9. Dr J D Singh says:

    It is very interesting conversation

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