नीचे दो भारतियों के शब्द-चित्र दिये हैं। एक रामचन्द्र और दूसरा अशरफ अली। दोनों के लिए सात एक-जैसे सवाल भी दिये हैं। समय होतो दोनों के बारे मेन पढ़लेन। फिर अपने विचार से नीचे के चार सवालों का जवाब मेन कुछ कहें:
- आज के कितने प्रतिशत हिन्दू रामचन्द्र के लिए सातों सवालों का जवाब हाँ में देंगे?
- आज के कितने प्रतिशत मुसलमान अशरफ के लिए सातों सवालों के जवाब हैं में देंगे?
- आज के कितने प्रतिशत हिन्दू अशरफ के लिए सातों सवालों के जवाब हाँ में देंगे?
- आज के कितने प्रतिशत मुसलमान रामचन्द्र के लिए सातों सवालों के जवाब हाँ में देंगे?
रामचन्द्र:
रामचन्द्र एक भारतीय है। सब भारतीयों के किसी धर्म-जाती-भाषा-प्रांत-लिंग आदि के भेदभाव के बिना समान अधिकार होने चाहियें, यह मानता है, इसी के अनुसार आचरण भी करता है। समाज में अन्याय और गैर बराबरी उसे बहुत अखरती है। समाज में सब विषयों पर खुलकर बे-हिचक बात होने और अभिव्यक्ती की स्वतन्त्रता का हिमायती है। उसे लगता है सभी राजनैतिक विचारधाराओं पर, धार्मिक मान्यताओं पर, स-तर्क विचार-विमर्श होना चाहिए। किताबों पर बंदिश को वह समाज को मूर्ख बनाने की साजिश मानता है। दूसरों की जिंदगी में दखल नहीं देता, अपनी जिंदगी में दखल नहीं चाहता। राजनैतिक और सामाजिक कामों में समरसता और सहयोग का हिमायती है और ऐसा ही करता है।
वह हिन्दू परिवार में जन्मा है, अपने आपको हिन्दू ही मानता है। जहां जरूरत होती हैं वहाँ विभिन्न दस्तावेजों में और सामाजिक जीवन में भी। कभी मंदिर नहीं जाता, कोई पूजा नहीं करता। सभी हिन्दू त्योंहार उत्साह से मानता है, पर उनके किसी भी धार्मिक दृष्टिकोण को अपने लिए स्वीकार नहीं करता, बाकी जो चाहें करें, उसे कोई ऐतराज भी नहीं है। विवाह उसका हिन्दू रीति से हुआ है और अपने बच्चों का भी उसी रीति से करना चाहता है। अपनी मृत्यु पर उसके परिवार जन जो चाहें अपने मन की शांति के लिए करें, उसे इस की कुछ भी परवाह नहीं है। माता-पिता की अंतेष्ठी आम हिन्दू रीतिरिवाज से की है, पर सिर मुंडवाना, गो-दान, बारहवें पर भोज-ब्राह्मण-भोज आदि नहीं किए। बच्चों के नाम संस्कृत-हिन्दी शब्दों में रखे हैं।
सब भारतीय नागरिकों को बराबर मानता है। मनु-स्मृति के जाती वाले, धार्मिक क्रियाक्रम वाले, औरतों को बंदिश में रखने वाले, आदि हिस्सों को अस्वीकार करता है। पर उसके इस श्लोक जैसे हिस्सों को अपनी संस्कृति के अच्छे हिस्से मानता है। “धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः । धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् । ।” जाती-वर्ण को पूरी तरह अस्वीकार करता है। और उसे अन्याय-पूर्ण व्यवस्था मानता है। वेदों के बहुत से हिस्सों में उसे केवल अविकसित समाज के कर्म-कांड दिखते हैं, बहुत हिस्सों में अंधविश्वास दिखाता है, कई जगह गहन दार्शनिक विचार दिखते हैं, कई जगह आध्यात्मिक दृष्टि से ऊदात्त विचार दिखते हैं, कई जगह ऊंचे दर्जे की कविता दिखती है। ऐसे ही वह उपनिषदों को भी देखता है। न वेदों को अपौरुशीय मानता है न ही उपनिषदों को शुद्ध स्वर्णिम-अध्यात्म-ज्ञान के भंडार। सब बहुत मिलाजुला मानता है।
राम, कृष्ण आदि कोई अवतार नहीं मानता। देवि-देवता नहीं मानता, ईश्वर के अस्तित्व को भी नहीं मानता। पर गीता में बहुत कुछ नैतिक और दार्शनिक भी देखता है। महाभारत और रामायण को भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण ग्रंथ और अच्छा साहित्य मानता है पर उनकी ऐतिहासिकता को स्वीकार नहीं करता। हालांकि उनके कुछ चरित्रों के कोई ऐतिहासिक व्यक्ती किसी रूप में हरे होने को भी पूरी तरह से अस्वीकार नहीं करता, पर अभी ऐसे कोई प्रमाण उसे नहीं दिखते। खान-पान में उसके लिए स्वास्थ्य और स्वाद ही मायने रखते हैं। जो सामने हो और अच्छा बना हो खा लेता है; मांस, मछली, मुर्गी, गौमांस, सूअर का मांस –जो भी मिलजाए।
भारतीय संस्कृति में बहुत कुछ ऊदात्त और महान स्वीकार करता है और बहुत कुछ सड़ा-गला, अन्याय-पूर्ण और अनैतिक भी देखता है। जैसे सभी संस्कृतियों में सदा ही होता है।
अब कुछ सवाल:
- क्या आप को रामचन्द्र के अपने आपको सार्वजनिक रूप से हिन्दू कहने पर कोई भी ऐतराज नहीं होगा?
- क्या आप रामचन्द्र को हिन्दू मानते हैं?
- मान लीजिये रामचन्द्र राजनीति को समझता है, वह कोई चुनाव लड़े तो क्या आप उसे अपना मत देंगे?
- वह आपका पड़ोसी हो तो क्या अपने बच्चों के उसके बच्चों के साथ खेलने देंगे?
- क्या रामचन्द्र आप को बुलाये तो आप उस के घर दावत में जाएँगे?
- क्या आप रामचन्द्र को कभी अपने घर दावत पर बुलाएँगे?
- रामचन्द्र का कुछ कुछ उसी के जैसा एक बेटा है, जो सदचरित्र है और अच्छी नौकरी भी करता है। रामचन्द्र उसका रिश्ता लेकर आपके घर आए तो क्या आप अपनी बेटी का रिश्ता उस से करेंगे?
अशरफ अली:
अशरफ अली एक भारतीय है। सब भारतीयों के किसी धर्म-जाती-भाषा-प्रांत-लिंग आदि के भेदभाव के बिना समान अधिकार होने चाहियें, यह मानता है, इसी के अनुसार आचरण भी करता है। समाज में अन्याय और गैर बराबरी उसे बहुत अखरती है। समाज में सब विषयों पर खुलकर बे-हिचक बात करने और अभिव्यक्ती की स्वतन्त्रता का हिमायती है। उसे लगता है सभी राजनैतिक विचारधाराओं पर, धार्मिक मान्यताओं पर, स-तर्क विचार-विमर्श होना चाहिए। किताबों पर बंदिश को वह समाज को मूर्ख बनाने की साजिश मानता है। दूसरों की जिंदगी में दखल नहीं देता, अपनी जिंदगी में दखल नहीं चाहता। राजनैतिक और सामाजिक कामों में समरसता और सहयोग का हिमायती है और ऐसा ही करता है।
वह मुसलमान परिवार में जन्मा है अपने आपको मुसलमान ही मानता है। जहां जरूरत होती हैं वहाँ विभिन्न दस्तावेजों में और सामाजिक जीवन में भी मुसलमान ही लिखता है, बताता है। कभी मस्जिद नहीं जाता, कोई नमाज नहीं पढ़ता, रोज़ा नहीं रखता। सभी इस्लामिक त्योंहार उत्साह से मानता है पर उनके किसी भी धार्मिक दृष्टिकोण को अपने लिए स्वीकार नहीं करता, बाकी जो चाहें करें, उसे कोई ऐतराज भी नहीं है। विवाह उसका मुस्लिम रीति से हुआ है और अपने बच्चों का भी उसी रीति से करना चाहता है। अपनी मृत्यु पर उसके परिवार जन जो चाहें अपने मन की शांति के लिए करें, उसे इस की कुछ भी परवाह नहीं है। माता-पिता की अंतेष्ठी आम इस्लामिक रीतिरिवाज से की है। बच्चों के नाम अरबी-फारसी शब्दों में रखे हैं।
कुरान की बहुत बातें उसे ठीक लगती है। पर अल्लाह के अलावा किसी और ईश्वर को मानोगे तो दोज़ख में जलोगे, आदि वह नहीं मानता। औरतों गैर बराबरी वाले हिस्सों को अस्वीकार करता है। इस्लाम में जाती आदि न होना, सब मुसलमानों को बराबर मानना, आदि उसे ठीक लगता है; पर न तो कुरान को ईश्वर की दी किताब मानता है ना ही मुहम्मद को पैगंबर मानता है। कुरान की बार बार अल्लाह को ना मानने पर दंड देने की धमकियाँ आदि उसे ऊल-जलूल बातें लगती हैं। हदीश और कुरान में जीवन की छोटी-छोटी बातों पर आदेश देना उसे बेमतलब दूसरों को नियंत्रित करने की कोशिश लगती है। कुरान और हदीश के बहुत हिस्सों में उसे केवल अविकसित समाज की परिपाटियाँ नजर आती हैं, बहुत हिस्सों में अंधविश्वास दिखाता है, कई जगह गहन दार्शनिक विचार दिखते हैं, कई जगह आध्यात्मिक दृष्टि से ऊदात्त विचार दिखते हैं। वह इनको शुद्ध-स्वर्णिम ज्ञान के भंडार के बजाय बहुत मिला-जुला मानता है।
कुरान में बताए गए पैगंबरों को नहीं मानता। मुहम्मद और उसके साथियों के जीवन में कई अच्छी बातें दीखती हैं उसे, और कई बुरी भी। वह उनको कोई आदर्श पुरुष नहीं मानता। कोई अल्लाह, देवदूत, जिन्न आदि भी नहीं मानता। खान-पान में उसके लिए स्वस्थय और स्वाद ही मायने रखते हैं। जो सामने हो और अच्छा बना हो खा लेता है; मांस, मछली, मुर्गी, गौमांस, सूअर का मांस –जो भी मिलजाए।
इस्लामिक संस्कृति में बहुत कुछ ऊदात्त और महान स्वीकार करता है, और बहुत कुछ सड़ा-गला, अन्याय-पूर्ण और अनैतिक भी देखता है। जैसा सभी संस्कृतियों में सदा ही होता है।
अब कुछ सवाल:
- क्या आप को अशरफ के अपने आपको सार्वजनिक रूप से मुसलमान कहने पर कोई भी ऐतराज नहीं होगा?
- क्या आप अशरफ को मुसलमान मानते हैं?
- मान लीजिये अशरफ राजनीति को समझता है, वह कोई चुनाव लड़े तो क्या आप उसे अपना मत देंगे?
- वह आपका पड़ोसी हो तो क्या अपने बच्चों को उसके बच्चों के साथ खेलने देंगे?
- क्या अशरफ आप को बुलाये तो आप उस के घर दावत में जाएँगे?
- क्या आप अशरफ को कभी अपने घर दावत पर बुलाएँगे?
- अशरफ का कुछ-कुछ उसी के जैसा एक बेटा है, जो सदचरित्र है और अच्छी नौकरी भी करता है। अशरफ उसका रिश्ता लेकर आपके घर आए तो क्या आप अपनी बेटी का रिश्ता उस से करेंगे?
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15 अक्तूबर 2019
I asked this questions to my friend he answered all as yes but except last question.
He said no to last and he confronted that muslims never change. there is deep inside “this” tendency which exist.
I am shocked by his response …. And have no word to tell him.
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why does his answer shock you? Do you think he is wrong? Do you think there are no people who think this? What do you think Muslims think about Hindus?
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I think the answer is wrong… But as far as the person is concern he is not wrong, he thinks like this because of his social construction. But if he knows he is wrong and still holds that believes, then what next????? And I am shocked because we work in education sector where we have students from all backgrounds. I do agree that people think like that even the muslim also. I listened my muslim friend’s thoughts and rigidity over the their beliefs.. But what about the Constitutional values that we wish for… This was the question I am wondering when I encounter such situations….
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The aspect of Financial Strength of both persons are missing which can be another important factor where people can accept that person as Hindu or Muslim while knowling all the practices and thoughts of both persons. And even for the last question, it can be possible as per the financial strong background and monthly income of the person to get marry the daughter of someone.
I think so……
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Actually such questions are asked with a background assumptions that all other things are taken care of. That is the standard way of such discussions.
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I think the answer is wrong… But as far as the person is concern he is not wrong, he thinks like this because of his social construction. But if he knows he is wrong and still holds that believes, then what next????? And I am shocked because we work in education sector where we have students from all backgrounds. I do agree that people think like that even the muslim also. I listened my muslim friend’s thoughts and rigidity over the their beliefs.. But what about the Constitutional values that we wish for… This was the question I am wondering when I encounter such situations….
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