दोहरे मापदंड और झूठी नैतिकता


रोहित धनकर

विवेक सम्मत नैतिकता का एक तक़ाज़ा यह होता है की वह सब पर एक-सी लागू होती है। और नैतिकता मूलतः विवेक सम्मत ही हो सकती है, ईश्वरीय नैतिकता तो सौदा या/और भय पर आधारित होती है। तो विवेकशील नैतिकता ना तो हवा के साथ रुख बदलती है नाही अपने स्वार्थ के लिए मुड़कर दोहरी होती है। ऐसी गिरगिटी नैतिकता तो वास्तव में अनैतिक होने का प्रमाण है। हमारे देश में इस समय मोटे तौर पर दो धड़े एक ऊग्र विचारधारतमक युद्ध में रत रहे हैं। इन में एक को हम हिन्दू-वर्चश्ववादी कहेंगे, क्यों की वे सब चीजों में हिन्दू-दृष्टि का बोलबाला चाहते हैं। यह ठीक है कि उनमें कुछ लोग भारतीय संस्कृति पर अधिक बल देते हैं और विचारधारतमक रूप से खुले हैं। पर इस धड़े के केंद्र में इस समय हिन्दू-दृष्टि का बोलबाला चाहने वाले ही हैं। दूसरे धड़े को हम कथित-उदारवादी कहेंगे, क्यों कि वे उदारवाद का मुखौटा लगा कर, उदारवाद की भाषा में बात करते हैं। पर वास्तव में मूलतः भारतीयता और हिन्दू विरोधी हैं। उन्हें लगता है कि देश में सही राजनैतिक और वैज्ञानिक चिंतन के विकास के लिए, समानता और सब के साथ न्याय के लिए, हिन्दू और भारतीयता को गरियाना जरूरी है।

नूपुर शर्मा और मुहम्मद ज़ुबैर का किस्सा इन दोनों के नैतिकता के मुखौटों को तार-तार कर देता है। इन दोनों की नैतिकता न सब पर एक जैसी लागू होती है नाही विवेक का सम्मान करती है। इसे ठीक से समझने के लिए हम इस किस्से को कुछ विस्तार से देखते हैं। पर पहले मैं यह सपष्ट करदूं कि मेरे विचार से ना तो नूपुर शर्मा के कथन और नवीन जिंदल के ट्वीट पर बवाल होना चाहिए ना ही मुहम्मद ज़ुबैर को गिरफ्तार करना चाहिए। एक लोकतन्त्र में लोगों को अपनी बात कहने की और अपने विचार रखने की इतनी आजादी जरूरी है।

नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल

अब तक सब जानते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद में मिले बेलनाकार पत्थर को लेकर शिवलिंग है या फव्वारा की जोरदार बहस चल रही थी। इसी बहस में शिव और शिवलिंग पर सैकड़ों टिप्पणियां हो रही थी, जो अभद्र थीं और हिंदुओं को चिड़ाने के लिए थीं। (एक बार फिर: इस के बावजूद यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्र दे दायरे में था।) एक टेलीविज़न बहस (या वितंडा?) में एक श्री रहमानी की इसी तरह की चिड़ाने वाली टिप्पणियों के जवाब में नूपुर शर्मा ने यह कहा: “अरे आप छोड़ो तुम्हारे उड़ते हुए घोड़े तुम्हारे उड़ते हुए घोड़े … and earth is flat जो कुरान में … लिखा है बताएगा, उसका मज़ाक उड़ाना शुरू करदूं? छह साल की बच्ची से ब्याह करके नौ साल में you are having sex with her, किसने? प्रोफेट मुहम्मद ने। बोलना शुरू करदूं मैं? Earth is flat according to Quran 88.20, बकवास ना कीजिये उड़ते हुए घोड़े पर बैठ कर फुर्र होजाइए फुर्र।”

जब इस बात पर अखबारों और सामाजिक-माध्यमों पर बवंडर उठगया तो नवीन जिंदल ने ट्वीट किया: “नबी के दुलारो से पूछना चाहता हूँ कि तुम्हारा नबी 53 वर्ष की आयु में 6 वर्ष की छोटी बच्ची आयशा के साथ शादी करता है फिर 56 वर्ष की आयु में 9 वर्ष की आयशा के साथ संबंध बनाता है … क्या यह संबंध बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता..?”

मैंने अपने 7 जून 2022 की ब्लॉग पोस्ट में विस्तार से लिखा है कि नूपुर ने जो कहा वह कुरान और हदीस में लिखा हुआ है और सैकड़ों मुसलमान मौलाना कहते हैं। और नवीन जिंदल का सवाल जायज है। पर इस पर बवाल हुआ, दर्जनों शहरों में हजारों मूसलमानों ने प्रदर्शन किए, कुछ जगह एक तरफा हिंसा हुई, और भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बना जिसके सामने यह कमजोर राष्ट्र झुक गया।

इस सारे किस्से में हमारे कथित-उदारवादी लगातार नूपुर और नवीन को दोषी मान रहे थे, इन प्रदर्शनों को या तो जायज ठहरा रहे थे या उन पर चुप थे। अंतरराष्ट्रीय दबाव पर बेशर्मी से अपने ही देश की कमजोरी और बेइज्जती पर बगलें बाजा रहे थे और हंस रहे थे। मुहम्मद ज़ुबैर की तारीफ कर रहे थे, इस मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण में पहल के लिए। दूसरी तरफ हिन्दू-वर्चश्ववादी नूपुर और नवीन को निर्दोष मान रहे थे और मुहम्मद ज़ुबैर को दंगा भड़काने वाला कह रहे थे। अर्थात: हिन्दू-वर्चश्ववादी नूपुर और नवीन की अभिव्यक्ती की स्वतन्त्रता का पक्ष ले रहे थे और कथित-उदारवादी उन की अभिव्यक्ती की स्वतन्त्रता का विरोध कर रहे थे।

मुहम्मद ज़ुबैर

अब एक चार साल पुराने ट्वीट के आधार पर मुहम्मद ज़ुबैर को गिरफ्तार कर लिए गया है। वह ट्वीट यह है:

कथित-उदारवादी प्रचार उपकारण ‘द वायर’ के अनुसार यह तस्वीर 1983 की एक फिल्म “किसी से ना कहना” से है, और ज़ुबैर का यह ट्वीट 2018 का है।

इस में एक देखने की बात यह है कि तस्वीर तो 1983 की फिल्म से है, पर ज़ुबैर की टिप्पणी “Before 2014: Honeymoon Hotel, After 2014: Hanuman Hotel. #SansakaariHotel” उस फिल्म से नहीं है। यह इस तस्वीर का जो हिन्दू संस्कारों की बात कराते हैं उनपर और भारतीय जनता पार्टी की राजनीति पर कटाक्ष है। और निश्चित रूप से उन हिंदुओं को चिड़ाने के लिए है जिनको ज़ुबैर संस्कारी हिन्दू समझता है।

अब पूरा कथित-उदारवादी मीडिया और तंत्र (हाँ, यह एक सुव्यवस्थित तंत्र है) बवंडर मचा रहा है कि यह सरकार फासिस्ट है, की ज़ुबैर की गिरफ्तारी गलत है, कि अभिव्यक्ती की स्वतन्त्रता की हत्या हो रही है। ये इनके हर बात पर लगाने वाले आम नारे हैं। इन्हें फासिस्ट, घ्रणा, हत्या के अलावा और कोई शब्द जैसे आते ही ना हों।

ज़ुबैर के ऐसे दर्जनों ट्वीट्स थे जिन में वह हिन्दू विचारों और देवताओं पर कटाक्ष कर रहा है, उन का मखौल उड़ा रहा है। मैंने अपने ऊपर इंगित ब्लॉग पोस्ट में यह लिखा था: “We all know that there was a storm of jokes and insulting comments on Shiva and Shivaling recently. When Ratan Lal was arrested (he should not have been arrested) all liberals rose in protest. And he was released. Now, all liberals want Nupur Sharma arrested, because this time it is Muhammad and not Shivaling. I will not be surprised if Hindus soon discover blasphemy. That would be a bad day for India and Indian democracy, but we can not deny that the Islamic idea of blasphemy gives an advantage to the bullying element in the Muslim population. The fundamentalist element in Hindu population will soon fashion such a weapon. Presently, so called liberal journalists can happily share insulting cartoons on Shivaling and at the same time pretend hurt when someone speaks truth about Muhammad. This kinds of double standards fuel animosity.”

एक रफ-सा हिन्दी अनुवाद: “हम सब जानते हैं कि हाल ही में शिवलिंग पर मज़ाक़ों और अपमानजनक टिप्पणियों का एक तूफान सा चला है। जब रतन लाल को गिरफ्तार किया गया (उसे गिरफ्तार नहीं करना चाहिए था) तो सब उदारवादी उस के समर्थन में उठ खड़े हुए थे। और उसे छोड़ दिया गया। अब सब उदारवादी नूपुर की गिरफ्तारी चाहते हैं, क्यों कि इस बार यह मामला मुहम्मद का है, शिवलिंग का नहीं। मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि बहुत जल्द हिन्दू भी ईशनिन्दा की धारणा अपना लें। वह भारत और भारतीय लोकतन्त्र के लिए बहुत बुरा दिन होगा। पर हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते ही इस्लाम में ईशनिन्दा की अवधारणा मुसलमानों में जो डराने-धमकाने वाले लोग हैं उनको यह विचार हुड़दंग का मौका देता है। हिंदुओं में कट्टरपंथी लोग भी बहुत जल्दी ऐसा ही हथियार खोज लेंगे। अभी तो कथित उदारवादी पत्रकार मजे में शिवलिंग का अपमान करने वाले कार्टून साझा कर सकते हैं, और साथ ही जब कोई मुहम्मद के बारे में सच भी कह दे तो भावनाएं आहत होने का नाटक कर सकते हैं। ये दोहरे मापदंड शत्रुता को बढ़ावा देते हैं।”

अब देखिये फिर से कथित उदारवादियों का दोहरा चरित्र सब के सामने है। ये ज़ुबैर की गिरफ्तारी को फ़ासिज़्म बता रहे हैं और नूपुर की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं।

मेरे विचार से न नूपुर को गिरफ्तार किया जाना चाहिए ना ही ज़ुबैर को। वैसे ज़ुबैर का सिर कटने का खतरा नहीं है, किसी ने न तो ईनाम रखा है, ना धमकी दी है, ना ही दंगे किए हैं। पर सरकार ने भी अपना दोहरा चरित्र इस में दिखाया है। मैं दोनों की गिरफ्तारी के विरुद्ध हूँ, पर एक को गिरफ्तार करना और दूसरे को नहीं, यह दोगलापन है। हालांकि इस के लिए नूपुर की गिरफ्तारी की मांग उलटी दिशा में जाना है, मांग ज़ुबैर को रिहा करने की होनी चाहिए। मैं यह भी मानता हूँ की धार्मिक भावनाएं भड़काने के इस नाटक को यहाँ तक पहुंचाने में मुख्य दोषी कथित उदारवादी हैं। ये लगातार दशकों से हिन्दू मान्यताओं और देवताओं पर अपमानजनक टिप्पणियों का साथ देते रहे हैं और इस्लाम और मुहम्मद पर टिप्पणियों का विरोध करते रहे हैं। अब हिन्दू-वर्चश्ववादी भी अपनी मान्यताओं और देवताओं के अपमान पर वैसे ही विरोध जताने लगे हैं जैसे मुस्लिम। हमें सोचना चाहिए, इन दोनों लोगों के दोहरे चरित्र की आलोचना करनी चाहिए। अभी तक हिन्दू-वर्चश्ववादी धार्मिक भावनाओं को ले कर बड़े प्रदर्शन और दंगे नहीं करने लगे हैं, मुसलमानों की तरह। यदि हमने कथित-उदारवादियों और मुसलमानों को नहीं रोका तो हिन्दू-वर्चश्ववादियों को नहीं रोक पाएंगे।

  • ज़ुबैर को रिहा करना चाहिए, उस पर मुकदमा नहीं चलना चाहिए।
  • नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग नहीं करनी चाहिए, उस पर मुकदमा नहीं चलना चाहिए।
  • नूपुर और नवीन को मुसलमान अतिवादियों से सुरक्षा देनी चाहिए, धमकी देने वालों को कानून के अनुसार गिरफ्तार करना चाहिए।
  • कथित-उदारवादी ढोंगियों और हिन्दू-वर्चश्ववादियों की सभी निष्पक्ष भारतीय नागरिकों को निंदा करनी चाहिए।

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28 जून 2022

रोहित धनकर

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