लब पे आती है दुआ और वंदे मातरम

December 24, 2022

रोहित धनकर

विद्यालय में की जाने वाली एक प्रार्थना:

“लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी

ज़िन्दगी शम्मा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी

हो मेरे दम से यूंही मेरे वतन की जीनत (खूबसूरती)

जिस तरह फूल से होती है चमन की जीनत

ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत यारब

इल्म की शम्मा से हो मुझको मुहब्बत यारब

हो मेरा काम गरीबों की हिमायत करना

दर्दमंदों से ज़ईफों से मुहब्बत रखना

मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको

नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझ को”

इस प्रार्थना पर उत्तर प्रदेश में शिक्षकों के विरुद्ध शिकायत दर्जी हुई है, ऐसी खबर है। मुझे पता नहीं कि यह बिलकुल वही प्रार्थना है जिस पर शिकायत हुई है, क्यों कि इस के एक से अधिक रूप इंटरनेट पर उपलब्ध है। पर सब में ये पंक्तियाँ भी है। अतः यह जिस पर ऐतराज हुआ है उस प्रार्थना से बहुत अलग नहीं होनी चाहिए।

इस प्रार्थना में ऐसा क्या है जिस पर ऐतराज हो? मेरे विचार से कुछ भी नहीं। और मैं मानता हूँ की इस पर ऐतराज करना गलत है।  मुझे विद्यालयों में सभी प्रार्थनाएं काबीले ऐतराज लगती हैं। कोई भी प्रार्थना नहीं होनी चाहिए। पर यदि होती है, तो यह उतनी ही कबीले ऐतराज है जितनी अन्य प्रार्थनायें। पर असल बात इस प्रार्थना का अर्थ नहीं है। असल बात राजनीति का एक रूप है, जिस के चलते इस पर शिकायत की गई है।

इस समस्या को समझने की कोशिश करते हैं। सब से पहले तो इन पंक्तियों को देखिये: “मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको, नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझ को”। अब इन पंक्तियों की तुलना कुरान की इन आयतों से करिए: 1.6 और 7 “हमें सीधा रास्ता दिखा। उन लोगों का रास्ता जिन पर तूने फ़्ज़्ल किया। उनका नहीं जिन पर तेरा गज़ब हुआ और न उन लोगों का जो रास्ते से भटक गए।” आयात 1.5 पढ़ने से साफ पता चलता है कि यह अल्लाह को मानने और केवल और केवल उसी की इबादत से संबन्धित है। 1.5 “हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझी से मदद चाहते हैं।” मौलाना आज़ाद ने साफ किया है यहाँ अर्थ यह है कि हम किसी भी और की इबादत नहीं करते। यह केवल अल्लाह की इबादत करने की बात नहीं है, बल्की और किसी की भी इबादत करने की मनाही भी है।

तो इस अर्थ में सही राह क्या है? “अल्लाह की और केवल उसी की इबादत करना”। और ये कौन हैं जिन पर गज़ब हुआ अल्लाह का? हिलाली के अनुसार यहूदी और ईसाई। क्यों? क्यों कि उन लोगों ने अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत की। तो ये आखिरी पंक्तियां सिर्फ और सिर्फ अल्लाह को, और किसी को भी नहीं, मानने से संबन्धित हो सकती है।

पर ऐसे तो सभी प्रार्थनाओं को किसी न किसी मजहबी किताब से जोड़ कर, और उस की ऐतराज वाली बातों की तरफ ध्यान दिला कर, अनुचित ठहराया जा सकता है। कोई भी प्रार्थना, चाहे उसमें राम का नाम आए, ईश्वर का या अल्लाह का, इस तरह की समस्याओं से बाहर नहीं होगी। यहाँ हमें यह समझना पड़ेगा कि “अल्लाह”, “गॉड” और “ईश्वर” की धारणाओं में फर्क हैं। आम बोलचाल में हम इन्हें एक ही मानते हैं। पर अल्लाह और गॉड अपने अलावा किसी और की इबादत को दंडित करते हैं। ईश्वर नहीं करता। अर्थात ईश्वर अल्लाह और गॉड को स्वीकार कर सकता है, पर अल्लाह और गॉड ईश्वर को और एक-दूसरे को नहीं। यह भी शास्त्रीय अवधारणा के बारे में हैं। आम लोग तो एक साथ जीना चाहते हैं और उन्हें एक ही मानते हैं। अतः इस पर ऐतराज भी कोई अच्छी बात तो नहीं है।

फिर भी यदि हम इस समस्या को समझना चाहते हैं तो हमें इतिहास में पीछे जाना पड़ेगा। हमें यह देखना होगा कि बहुत से मुसलमानों को “वंदे मातरम” और “भारत माता की जय” से ऐतराज है। ये दोनों ऐतराज एक ही श्रेणी के हैं। यदि आप कुछ मुसलमानों के  “वंदे मातरम” और “भारत माता की जय” को बुरा भला नहीं कहते तो आप कुछ हिंदुओं के “मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको” पर ऐतराज को भी बुरा-भला नहीं कह सकते।

मुझे नहीं लगता इन पंक्तियों पर ऐतराज करने वाले हिंदुओं को वास्तव में “पंक्तियों” से ऐतराज है। उन्हें “वंदे मातरम” पर ऐतराज से ऐतराज है। उन्हें हमारे कथित बौद्धिकों के दोगलेपन से ऐतराज है।

अंत में एक बार फिर: मैं इन पंक्तियों पर बवाल को बिलकुल अनुचित और समाज में दुराव पैदा करने वाला काम मानता हूँ। पर मैं “वंदे मातरम” पर ऐतराज को भी अनुचित और समाज में दुराव पैदा करने वाला काम मानता हूँ। और यह भी मानता हूँ कि शुरुआत “वंदे मातरम” (और ऐसी ही अन्य चीजों) पर  ऐतराज से हुई है। यह उस की प्रतिकृया है। यदि हम इन चीजों को रोकना चाहते हैं तो हमें दोनों से खुलेपन का आग्रह करना पड़ेगा। इस में भेदभाव शायद अब और नहीं चलेगा।

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24 दिसंबर 2022


एक उलझा-पुलझा पर सामयिक संवाद

December 12, 2022

रोहित धनकर

नीचे ट्वीटर पर चले या चल रहे एक संवाद को ज्यों-का-त्यों (गलतियों सहित) दे रहा हूँ। यहाँ देने का कारण यह है की बहुत से अलग अलग अंदाजों में चल रहे वर्तमान राजनैतिक संवाद की यह भी एक बानगी है। साथ ही मेरी बातों पर फुटकर टिप्पणियों का स्पष्टीकरण भी।

मैं जानता हूँ इस वक्त मेरा मत, इस संवाद में जैसा आया है, वह अल्पमत है। इस तरह की बात कहने को भी बड़ा अपराध या पाप माना जाता है। पर मैं यह भी जनता हूँ कि यह वर्तमान की एक समझ को भी अभिव्यक्त करता है। फिर चाहे वह समझ कितनी भी गलत या सही हो। हर नागरिक की हर बात पर ध्यान देना लोकतन्त्र में जरूरत होता है। ध्यान देने के और कारण समझने के बाद चाहे उसे खारिज ही कर दें। पर किसी बात को कहने पर लानत-लमानत लोकतांत्रिक है। इस लिए।

मैंने ट्वीटर पर यह टिप्पणी की:

“धर्म बदलने पर आज कल बहुत चर्चा है। 1 यदि हिन्दू जातिवाद को खत्म नहीं कर सकते और दलितों को यह विश्वास नहीं दिला सकते तो वे धर्म-परिवर्तन को नहीं रोक सकेंगे। 2 बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन से भारत, हिंदुओं, और दलितों को बहुत भारी नुकसान होने वाला है।”

इस पर @ZafIndian का यह व्यंग्य आया:

“Bilkul dharma pariwartan aur no. 2 wale both mudde hal ho jayenge to sabko rozgar, achhi education and health facilities mil jayengi. priorities.”

मेरा लंबा जवाब: (क्यों कि वे बार-बार मेरी टिप्पणियों पर ऐसे ही व्यंग्य करते आए हैं।)

आप फिर आगाए अपनी व्यंज्ञात्मक अस्तित्वहीन नैतिक-श्रेष्ठता वाली टिप्पणियां लेकर? आप फरमाते हैं: “Bilkul dharma pariwartan aur no. 2 wale both mudde hal ho jayenge to sabko rozgar, achhi education and health facilities mil jayengi. priorities.”

अब आगे के ट्वीट्स ध्यान और धीरज से पढ़िये और आखिरमें एक-आध सवाल होंगे उनका उत्तर बिना लफ्फाजी, विषयांतर और प्रति-प्रश्नों के साफ-साफ दीजिये।

  1. ये दो मुद्दे हल हो जाने से रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य की सब समस्याएं हल नहीं होंगीपर मदद मिलेगी। आगे पढ़िये कैसे।
  2. जाती-भेद के कारण हिन्दू समाज में अन्याय और उसके प्रतिकार के लिए तनाव है। इस में समाज के संसाधन और ऊर्जा खत्म होती है। एक यह भेद मिट जाने से वह ऊर्जा बच जाएगी, संसाधनों का उपयोग सब के भले के लिए समान रूप से होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। इस से विकास की संभावना बढ़ जाएगी।
  3. साथ ही ईसाइयत और इस्लाम की तरफ से उनके बहुत बड़े-बड़े अमूहों द्वारा अपने-अपने मजहबों को फैलाने के लिए हिन्दू-समाज पर हो रहे सतत भावनात्मक और बौद्धिक हिंसक आक्रमणों की सफलता कम हो जाएगी। इस से सम्पूर्ण भारतीय समाज में तनाव घटेगा (खत्म नहीं होगा, पर घटेगा)। यह कम तनाव वाली स्थिति पूरे समाज के विकास पर ध्यान देने में मददगार साबित होगी।
  4. इन दो चीजों के चलते शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की स्थितियों में सुधार की संभावनाएं बढ़ेंगी

अब आप के नैतिक श्रेष्ठता के दंभ पर कुछ सवाल:

–अब जानते हैं की भारत में धर्म परिवर्तन पर बहुत ज़ोर-शोर से काम चल रहा है। इस्लाम में आंतरिक ‘शुद्ध इस्लाम’ के लिए प्रयत्न और दावा, दोनों चल रहा है। ट्वीटर स्पेस में इस पर बहुत से प्रचार चल रहे हैं।

  1. क्या पाने कभी इन चीजों पर सवाल उठाए हैं, कि इन से समस्याएं हल नहीं होंगी?
  2. समान नागरिक संहिता का विरोध हो रहा है। क्या पाने इस पर कभी सवाल उठाए हैं कि यह विरोध विकास में बाधक है?
  3. नबी के समान के नाम पर उग्र प्रदर्शन और हत्याएं हुई हैं। क्या आपने इस पर सवाल उठाए हैं कि ये अन्याय पूर्ण धोंस और डर के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर आक्रमण है?

मैंने आप के प्रश्नों का सीधा उत्तर दिया है पहले, उसके बाद आप की लगातार व्यग्यबाजी को समझने के लिए ये सवाल उठाए हैं। अतः यह सवाल पर आक्रमण नहीं, व्यंग्य का प्रतिकार है।

आप के पास कोई जवाब हों तो बिना किसी हीले हवाले के साफ-साफ दीजिये।

इस पर @ZafIndian साहब:

“Dharm insan ka vyaktigat right hai wo kya Apnana chahe. but 1 Dharm se dekh kar chalna ki conversion se samaj ka nuksan ya bhala hoga ya nahi wo apka poorvagrah hai. Apki conversion par rai bas ek Dharma ke angle se thi isliye mudde likhe. Saadar

Shukriya samay dekar tarkik points dene ke liye. 1 and 2 se sahmati hai. 3rd point me bhartiya samaj me isaiyat, islam sabhi hain. Aap poorvagrah lekar chal rahe hain apke aage ke binduon se dikha. Dharma pariwartan ki bat aur mere sawal uthane par.”

मेरा दूसरा लंबा जवाब:

  1. इस बार आपने व्यंग्य नहीं किया, यह शुभ संकेत है। मेरे विचार से बात करने का ठीक तरीका बिना लोगों का व्यक्तिगत मूल्यांकन और उन पर कटाक्ष किए मुद्दे पर सही सवाल पूछना और तर्क/तथ्य देना है।
  2. मुझे बार-बार आप के कथनों पर व्यक्तिगत टिप्पणी इस लिए करनी पड़ रही है कि आप बिना कारण जाने पूर्वाग्रह आदि के आरोप लगाते हैं।
  3. मैं जनता और मानता हूँ कि धर्म (मजहब/religion) व्यक्तिगत मामला है। और लोगों के अपनी इच्छा से मजहब बदलने पर मुझे कोई ऐतराज नहीं है। पर मैं धर्मांतरण के लिए हर तरह के बाहरी हस्तक्षेप को व्यक्ति गरिमा के विरुद्ध हिंसा मानता हूँ। मैं आप से गीता, वेद, कुरान आदि पर विवेकशील चर्चा कर सकता हूँ, उन पर टिप्पणी कर सकता हूँ। आप भी ऐसा ही कर सकते हैं। पर जैसे ही हम में कोई एक कहता है कि ‘तुम हिन्दू/मुसलमान हो जाओ’ हम व्यक्ति के विवेकशील आत्म-निर्णय में हस्तक्षेप कर रहे होते हैं। यह उसकी गरिमा पर हिंसा है।
  4. यदि इस के साथ दबाव, लालच, धोखा या/और डर भी मिल जाएं तो यह गैर कानूनी भी हो जाता है। मैं मानता हूँ कि ऐसे प्रयत्न इस समय भारत में चल रहे हैं। और इन का प्रमुख निशाना हिन्दू समुदाय है। हालांकि कुछ छोटे हिन्दू समूह भी कुछ मुसलमानों को वापस हिन्दू बनाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। मेरे विचार से दोनों गलत हैं।
  5. धर्मांतरण से नुकसान (भारत को), धर्म परिवर्तित लोगों सहित, मनाने के मेरे कारण हैं। वे गलत हो सकते हैं और मुझे समझ में आने पर बादल लूँगा। पर अभी तो हैं
  6. मेरे कारण यह हैं:
    1. मैं ऐसा मानता हूँ कि विभाजन की हिंसा और त्रासदी के बावजूद यह देश लोकतान्त्रिक और पंथ-निरपेक्ष रह सका क्यों कि यह हिन्दू बहुल है। ऐसा नहीं है कि हिन्दू कोई देवदूत हैं। पर उनके पंथिक-मताग्रह इस्लाम जितने साफ और अनम्य नहीं हैं। इस लिए उनके समझदार नेता उन्हें कट्टर पंथी हिंदुओं के बावजूद मनाने में सफल रहे। मुसलमान अपने पांथिक-मताग्रहों के बारे में उन में समझदार नेताओं की नहीं सुनते, कट्टरवादियों की या मुल्लों की ही सुनते हैं। (मौलाना अबुल कलाम का उदाहरण देखलें।)
    1. इतिहास और दुनिया को देख कर मैं यह मानता हूँ कि इस वक्त भारत में मुस्लिम बाहुल्य आने से समानता और स्वतन्त्रता खत्म हो जाएगी, जितनी बची है वह भी। अतः लोकतन्त्र नहीं रहेगा
    1. जो हालात हैं इन में धर्मांतरण सफल रहा तो बाहुल्य मुसलमानों का ही होगा। इस्लाम एक-आध देश को कुछ हद तक छोड़दें तो लोकतन्त्र को सहन नहीं कर सकता। भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल देश चरित्र के लिहाज से हमारे सब से नजदीक हैं। बांग्लादेश और पाकिस्तान को देखलें। या हमारे तहां कश्मीर को।
    1. यह सिर्फ हिंदुओं को नहीं पूरे भारत देश और भारतीय संस्कृति को हानि पहुंचाएगा। इस में उपस्थित मुसलमानों और ईसाइयों को भी।
    1. इसे आप मेरी गलत समझ मान सकते हैं, या पूर्वाग्रह भी। पर इस के लिए तथ्यों और तर्कों की जरूरत पड़ेगी। मुझे पूर्वाग्रही या और कुछ और कहने भर से काम नहीं चलेगा।
  7. मैं जानता और मानता हूँ कि भारतीय समाज के सभी हिन्दू और गैर-हिन्दू एक जैसे महत्वपूर्ण हिस्से हैं। इस में ईसाई और मुस्लिम भी आगए। और जब कहता हूँ कि पूरे भारतीय समाज को हानि होगी तब इसे ध्यान में रख कर कहता हूँ। कारण ऊपर दिये हैं।
  8. आप के बारे में व्यक्तिगत सवाल मेरे पूर्वाग्रहों के कारण नहीं  हैं। वे आप के मेरे ऊपर लगातार आक्रमण करने और एक-तरफा टिप्पणियों की आप की प्रवृति को उजागर करने के लिए हैं।
  9. अब मेरा सुझाव यह है कि बिना मेरी नैतिकता या बुद्धि पर अपना मत दिये, मेरे तथ्यों और तर्कों में कोई कमी या अस्पष्टता हो तो उस की बात करिए।
  10. ये सब मैंने सिर्फ आप की टिप्पणियों के लिए नहीं उन सब लोगों को अपनी बात साफ करने के लिए लिखा है जो मेरी बात को पूरा जाने बिना कुछ-कुछ कटाक्ष या तोहमती टिप्पणियाँ करते रहते हैं।

अवसर उपस्थित करने के लिए धन्यवाद।

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