रोहित धनकर
प्रधानमंत्री से लेकर हर आम नागरिक तक सब भारत के संविधान को “बाबा साहब का दिया संविधान” कहते हैं। यह फ़ैशन है। यह आम जन और विशेषरूप से नवयुवा पीढ़ी को मूर्ख बनाने की साजिस भी है। और झूठ है।
भारत की संविधान सभा में कुल सदस्य 389 थे, जिनमें से 292 प्रांतों के प्रतिनिधि थे, 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे तथा 4 दिल्ली, अजमेर-मेरवाड़ा, कुर्ग और ब्रिटिश बलूचिस्तान के चीफ कमिश्नर प्रांतों के प्रतिनिधि थे।
संविधान सभा में कुल २२ समितियाँ थीं। उन में से १३ प्रमुख समितियाँ निम्न लिखित हैं। (यह विकिपीडिया से लिया है, चाहें तो और अधिक आधिकारिक स्रोत देखलें।) इन सब के अध्यक्षों के नाम ध्यान से देख लें।
प्रमुख समितियाँ
- प्रारूप समिति – भीमराव रामजी अम्बेडकर
- संघ शक्ति समिति – जवाहरलाल नेहरू
- संघ संविधान समिति – जवाहरलाल नेहरू
- प्रांतीय संविधान समिति – वल्लभभाई पटेल
- मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यकों और जनजातीय और ऐक्सक्लूडेड क्षेत्रों पर सलाहकार समिति – वल्लभभाई पटेल। इस समिति में निम्नलिखित उपसमितियाँ थीं:
a. मौलिक अधिकार उप-समिति – जे.बी. कृपलानी
b. अल्पसंख्यक उप-समिति – हरेंद्र कुमार मुखर्जी,
c. उत्तर-पूर्व सीमांत जनजातीय क्षेत्र और असम बहिष्कृत और आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र उप-समिति – गोपीनाथ बोरदोलोई
d. बहिष्कृत और आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र (असम के अलावा) उप-समिति – ए वी ठक्कर - प्रक्रिया समिति के नियम – राजेंद्र प्रसाद
- स्टेट्स कमेटी (राज्यों के साथ बातचीत के लिए समिति) – जवाहरलाल नेहरू
- संचालन समिति – राजेंद्र प्रसाद
- राष्ट्रीय ध्वज पर तदर्थ समिति – राजेंद्र प्रसाद
- संविधान सभा के कार्य हेतु समिति – जी वी मावलंकर
- हाउस कमेटी – बी पट्टाभि सीतारमैया
- भाषा समिति – मोटुरि सत्यनारायण
- बिजनेस कमेटी का आदेश- के एम मुंशी
संविधान सभा का काम-काज कुछ व्यवस्थित चरणों में चला था, जो निम्न प्रकार थे:
- समितियाँ ने अपने क्षेत्र के मुद्दों पर रिपोर्ट पेश की।
- बी. एन. राव ने रिपोर्टों और अन्य देशों के संविधानों पर अपने शोध के आधार पर एक प्रारंभिक मसौदा तैयार किया।
- बी. आर. अंबेडकर की अध्यक्षता वाली मसौदा समिति ने एक विस्तृत मसौदा संविधान प्रस्तुत किया जिसे सार्वजनिक चर्चा के लिए प्रकाशित किया गया।
- मसौदे संविधान पर चर्चा की गई, और संशोधन प्रस्तावित और अधिनियमित किए गए।
- संविधान को अपनाया गया, जिसमें कांग्रेस पार्टी (जिसे कांग्रेस की संविधान पार्टी के रूप में जाना जाता है) के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक समिति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यह सभा उस वक्त भारत का प्रतिनिधित्व करती थी। उपरोक्त प्रक्रिया और समितियों के काम से स्पष्ठ है कि संविधान किसी एक व्यक्ति का नहीं था। किसी भी लोकतांत्रिक देश का संविधान एक व्यक्ति का दिया नहीं हो सकता। ऐसा सिर्फ़ अधिनायकवाद में ही संभव है, लोकतंत्र में नहीं।
ध्यान देने की बात है कि भारत का आम नागरिक संविधान को उद्द्येशिका (preamble) और मौलिक अधिकारों से आगे नहीं जानता। यह भी पढ़ता नहीं, सुनता है। उद्द्येशिका का लगभग समस्त भाव जवाहर लाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत १९३० के संविधान में उपस्थित था। साथ ही जवाहर लाल नेहरू के संविधान सभा में दिये भाषण में भी था। मौलिक अधिकारों की समिति के अध्यक्ष सरदार पटेल थे। अतः इन दोनों में उनका योगदान अति महत्वपूर्ण था।
यह मैं अंबेडकर के योगदान और महत्व को कम करने के लिए नहीं लिख रहा। उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण था। पर संविधान एक महती सामूहिक प्रयास और बौद्धिक विमर्श का नतीजा था, किसी एक व्यक्ति की देन नहीं। साथ की भारत के स्वतंत्रता आंदोलन ने वह ज़मीन तैयार की थी, जिस में संविधान सभा बन सकी।
“बाबा साहब का संविधान” एक वोट बैंक प्रेरित राजनैतिक नारा है। यह वर्तमान फ़ैशन है। यह देश के नवयुवा नागरिकों को भ्रमित करता है। दु:ख की बात यह है कि आज के कथित बौद्धिक, राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक, और इतिहास के प्राध्यापक भी इस मूर्ख, भ्रामक और घातक नारे के प्रचार में लगे हैं। इन में से एकआध तो सामाजिक माध्यमों पर इतिहास के चैनल भी चलाते हैं। पर सब अपनी बेईमानी और स्वाहित के चलते झूठ को आगे बढ़ा रहे हैं, जब कि इन का काम लोकतंत्र में बुद्धुपना और झूठ फैलाने वाले हर प्रचार की पोल खोलता है।
Posted by Rohit Dhankar