“मोदी … और इंदिरा गांधी” से आगे: यह संवाद का तरीका स्वयं में ही प्रमाण है


रोहित धनकर

(नीचे के आलेख में बहुत वर्तनी की गलतियां होंगी. यह इंटरनेट पर हिंदी टाइप पेज पर लिखा है. दुरुष्त करना आता नहीं है. तो माफ़ करें.)

केशव जी ने मेरे आलेख “मोदी और …..” पर टिप्पणी की है. यह टिप्पणी एक पूरे ब्लॉग पोस्ट की मांग करती है, मुझे लगा सिर्फ पुराने पोस्ट में इस का उत्तर नहीं दिया जा सकता. तो पहले आप केशव जी की पूरी टिप्पणी पढ़लें:

“रोहित धनकर का लेख, एक hallucination से पीड़ित है, कपोल कल्पानाएं कर के अपना पागलपन लोगों पर थोपना..
मोदी पिछले एक दशक से गुजरात में कार्य कर रहे हैं, एक ऐसी सरकार जिसने स्वतन्त्रता के बाद से इस देश में एक छत्र राज किया है, उसके पास हर तरह की ताक़त मौजूद है उसने श्याम दाम दंड भेद यानी हर तरह हथकंडे उस सरकार ने पिछले एक दशक में मोदी को मटियामेट करने के लिए इस्तेमाल किये पर वे लोग ना तो गुजरात का सौहार्द खराब कर पाये ना वो गुजरात की प्रगति को रोक पाये
वास्तविकता यह है की इस देश को अपनी जेब में रख कर चलने वालों को मोदी से बहुत सी परेशानियां हैं और मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो उन्हें ही दिक्कते आने वाली हैं इसलिए वे ही लोग हिटलर जैसे जुमले आम जनता को डराने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं और उन्हें भटकाने की पुरजोर कोशिशों में लगे हैं
रोहित धनकर जैसे लोग सिर्फ ट्रेडर्स हैं जो सिर्फ बिक कर अपना लाभ लेते हैं देश हित के लिए न सोचते हैं ना ही उन्हें कोई मतलब है…”

किसी भी संवाद को सार्थक और विवेक सम्मत बनाये रखने के लिए जरूरी है कि हम एक दूसरे कि बात सुनें, उस के पीछे तथ्य, तर्क और नजरिये को समझें. समझने के बाद उस से सहमत होना, असहमत होना, उसका समर्थन करना या विरोध करना हमारा लोकतांत्रिक हक़ है. “पागलपन”, “बिकना” आदि शब्दावली सुनने और समझने से इंकार करने के संकेत हैं. तो मेरी केशव जी से पहली गुजारिश तो यह होगी कि वे मेरे पागलपन पर ध्यान देने के बजाय मेरे तर्क और तथ्यों पर ध्यान दें. यह इस लिए कि लोकतंत्र में संवाद के बिना काम नहीं चल सकता, और किसी भी विचार के साथ, चाहे आप उसे कु-विचार ही माने, संवाद तो करना ही पड़ेगा.

पिछले दस वर्षों में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने मोदी को शिकार बनाने कि कोशिश की यह आरोप कांग्रेस और उसके समर्थकों के बयानों और व्यवहार के देखते हुए कोई बहुत खींचा हुआ नहीं लगता. एक प्रकार कि दुर्भावना कांग्रेस के व्यवहार में दीखती रही है. पर उसी प्रकार कि दुर्भावना मोदी में भी कांग्रेस के प्रति नजर आती रही है.

केशव जी ने इस बात कि तरफ ध्यान ही नहीं दिया कि मैं मोदी को हिटलर के बजाय इंदिरा गांधी के अधिक नजदीक पता हूँ. और मेरा लेख इस तरह का अतिशयोक्तिपूर्ण डर पैदा करने कि कोशिश का विरोध करता है.

मैंने मोदी के बारे में जो चार बातें कही हैं के विरुद्ध केशव जी ने कोई नयी जानकारी या तर्क नहीं दिए हैं. मैंने कहा है कि:
१. मोदी और उनकी पार्टी में हिन्दू-पक्षधरता है, वे पंथ-निरपेक्ष नहीं हैं. इस से डर और कट्टरवाद बढ़ेगा.
२. मोदी कि आर्थिक नीतिया शायद गरीब आदमी कि अनदेखी करेंगी.
३. मोदी और उसके लोग विरोधियों को ताकत के बल पर चुप करने कि कोशिश करेंगे.
४. मोदी में अधिनायकवाद के साफ़ लक्षण हैं.

केशव जी ने इसके विरोध में एक भी तर्क नहीं दिया. केवल मुझे बिक हुआ कहा कर इसे खारिज कर दिया. तो नया पलोग पोस्ट इन चीजों पर नए तथ्य या तर्क देने कि लिए नहीं लिख रहा, पुराने ही काफी हैं.

नए ब्लॉग पोस्ट के पीछे कारण केशव जी की भाषा और संवाद का तरीका है. इस कि आप तोगड़िया की मुसलमानों को दूर रखे कि सलाह, गिरिराज सिंह की मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की धमकी, और अमित शाह कि बदले की सलाह से करिये. मोदी के समर्थकों का यह जो संवाद का तरीका है, इसमें जो सहमत नहीं है वह दुश्मन है, वह लोकतंत्र में भिन्न विचार रखने वाला नागरिक नहीं है, सत्य का दुश्मन है. और ऐसे लोगों को मोदी प्रधान मंत्री बने तो केशव जी के कथन के अनुसार ” दिक्कते आने वाली है”. मेरा तीसरा बिंदु एहि है. इसे केशव जी बिना जाने ही सही साबित कर रहे हैं.

केशव जी मझे तो जानते ही नहीं, तो उन्हें कैसे पता कि मैं ट्रेडर हूँ और कुछ बेचता हूँ? वास्तव में उनके लिए ये सब जानने की जरूरत भी नहीं है; क्योंकि विरोधी होना स्वयं ही खारिज करने के लिए काफी है. केशव जी, यही समश्या है, आप जैसे लोग लोकतंत्र की मूल भावना को नहीं समझते और इस लिए भीड़ के बल पर तानाशाही करना चाहते हैं. भाई, यह तरीका ठीक नहीं है. आप हमारी बात सुनिए, ठीक लगे तो मानिए, न लगे तो तर्क से विरोध करिये. ऐसा ही हम आप के साथ करेंगे. तभी हम समझ सकेंगे एक दूसरे को और कोई सहमति और साझा विचार बना पाएंगे.

केशव जी के लेखन में यह भी साफ़ है कि देश भक्ति उनके विचार से उन्ही कि बपौती है. जो उनसे असहमय है उनको देश से कोई मतलब नहीं है. वह देश के बारे में नहीं सोचता. केशव जी, देश के मायने हैं उसके सारे नागरिक, उसकी सारी संस्कृति, उसकी सारी परम्पराएँ, उसकी साड़ी जमीन और उसकी सारी संपत्ति. लोकतंत्र में देश शांझी सोच से बनता है. कोई धडी-घड़ाई मूर्ती कि पूजा से नहीं. देश भक्ति का अर्थ है उसके सारे लोगों कि भलाई के बारे में सोचना और चिंतित हिना, सब के दुःख और दर्द को महसूस करना, उसकी संस्कृति की सुबह बातों को आगे बढ़ाना और निकृष्ठ या न्याय विरोधी विचार को खारिज करना. और विरोधियों के अधिकारों की रक्षा करना. उनको भी बोलने की आजादी देना. जो यह सब नहीं करता वह और कुछ भी हो देशभक्त तो नहीं हो सकता.

केशव जी, मैंने यहाँ जो कहा है इस से आपको बहुत असहमति होसकती है. अब आप जरा ठन्डे मन से चोचिये इस में गलत क्या क्या है. गलती सब से होती है, मैंने भी कुछ गलत लिखा होगा. पर उसे संयत भाषा में और तथ्यों के साथ तर्क के साथ बताइये. हो सकता है मैं आप से सहमत हो जाऊं या आप ही मेरे से सहमत हो जाएँ.

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