विद्यालय प्राचार्य की नोट-बुक २

August 23, 2015

रोहित धनकर

[प्राचार्य की नोट-बुक में  भाग १ से आगे की बात-चीत जारी है. पिछले भाग में श्रीमती खत्री ने गुणवत्ता का एक खाका खेंचा जिसे भिलानाथ जी ने समेकित करके उन की सहमती ली.अब आगे.—रोहित]

[श्रीमती खत्री: बिलकुल ठीक भोलानाथ जी. इसके अलावा महत्त्वपूर्ण स्किल्स की भी बात करनी पड़ेगी.]

श्रीमती जैन: जी, कौनसी स्किल्स? स्किल्स माने “दक्षताएं”?

श्रीमती खत्री: बिलकुल, दक्षताएं; या कौशल भी कहते हैं शायद हिन्दी में.

(श्रीमती खत्री बीच-बीच में अंग्रेजी में बात कर रही थी, मैं जहां तक संभव होगा उसका हिन्दी अनुवाद दे रहा हूँ. हम सब उत्सुक प्रतीक्षा में.)

श्रीमती खत्री: गुणवत्ता में दक्षताओं का बहुत महत्व है. आज कल तीन प्रकार की दक्षताएं जरूरी हैं: subject skills (विषय-दक्षताएं), twenty-first century skills (इक्कीसवीं सदी-दक्षताएं) और life skills (जीवन-दक्षताएं).

(सब आगे व्याख्या सुनने की उत्सुकता में.)

श्रीमती खत्री: आपको बच्चों के जो समूह बनाए थे, फेजिंग में (आउटस्टैंडिंग, अच्छे, औसत, और सुधार की जरूरत) और इन दक्षताओं की एक सारणी बनानी पड़ेगी.

(यहाँ श्रीमती खत्री ने अपनी नोट-बुक में एक सारणी बना कर दिखाई जो मैं नीचे दे रहा हूँ.)

श्रीमती खत्री की स्तर-दक्षता सारणी
विषय-दक्षताएं सदी-दक्षताएं जीवन-दक्षताएं
आउटस्टैंडिंग
अच्छे
औसत
सुधार की जरूरत

श्रीमती खत्री: विषय-दक्षताएं अच्छे परीक्षा-परिणाम के लिए जरूरी हैं. सदी-दक्षताएं अच्छा जॉब मिलाने के लिए जरूरी हैं; और जीवन-दक्षताएं व्यक्तित्व-विकास (personality development) के लिए जरूरी हैं. ये तीनों स्किल्स होंगी तभी स्कूल टॉप पर जा पायेगा.

सुश्री सिंह: मेडम, इन स्किल्स को थोड़ा-सा समझा कर बताएं.

श्रीमती खत्री: विषय-दक्षताएं माने सिल्लेबस-दक्षताएं. विषय के सिलेबस में आई इनफार्मेशन (जानकारी), उसको याद रखना, परीक्षा में प्रश्न-पत्र के सवालों को समझ कर मांगी गई जानकारी को उचित तरीके से लिखना, उस जानकारी को प्राब्लेम सोल्विंग (समस्या समाधान) में काम में लेना, आदी. सारे सिलेबस की स्किल्स पर ध्यान देना पड़ेगा.

(हम सब कुछ-कुछ उलझन में थे, पर सुश्री सिंह के चहरे पर उलझान साफ़ झलकने लगी थी. आगे सुनाने के लिए सभी मौन हरे.)

श्रीमती खत्री: सदी-दक्षताएं माने वो स्किल्स जिनकी जॉब में जरूरत पड़ती है; जैसे पवार-पॉइंट प्रेजेंटेशन, कुछ बेचने के लिए नेगोसिअसन (सहमती बनाने के लिए वार्ता) करना, जॉब में कुछ नया डालना, कड़ी मेहनात करना.

(सुश्री सिंह और उलझन में, कुछ कहने को तत्पत्ता जैसा कुछ भाव…., पर कहा कुछ नहीं.)

श्रीमती खत्री: जीवन-दक्षताएं माने एम्पथी (संवेदना), डिसीजन मेकिंग (निर्णया लेना), प्रॉब्लम सोल्विंग (समस्या समाधान), क्रिएटिविटी (रचनात्मकता), सोशल स्किल्स लाइक फ्रेंडशिप (सामाजिक दक्षताएं जैसे दोस्ती करना), आदी.

(अब सिहं की उलझन बहुत साफ़ दीख रही थी.)

सुश्री सिंह: मेडम, मुझे दो कठिनाइयां लग रही हैं इन दक्षाओं में और उनके तीन वर्गों में विभाजन में. क्या बात को बेहतर समझने के लिए कुछ पूछ सकती हूँ?

श्रीमती खत्री: बिलकुल, इसी लिए तो यह मीटिंग रखी है सचिव महोदय ने. आप सब चीजें बे झिझक पूछें.

सुश्री सिंह: मेरी बड़ी समस्या यह है मैडम, कि इस सूची में मुझे कई तरह की चीजें लग रही हैं. जैसे संवेदना, दोस्ती, आदी मैंने कहीं पढ़ा है कि स्किल्स नहीं हैं. ये दोनों मन के भाव हो सकते हैं, रुझान हो सकते हैं, और हम इन रुझानों/भावों को मूल्यों के रूप में भी स्वाकार कर सकते हैं. पर क्या ये स्किल्स (दक्षतायें) हैं? इसी तरह क्या जानकारी (इनफार्मेशन) दक्षता है मेडम? मैंने पढ़ा है की जानकारी तो एक मानसिक अवस्था (स्टेट ऑफ़ माइंड) भर होती है. फिर मेडम निर्णय लेना, समस्या समाधान और रचनात्मकता (क्रिएटिविटी) जैसी चीजों को क्या हम स्किल्स कह सकते हैं?

श्रीमती खत्री: (कुछ उलझन के साथ, जो उनके रुबाबदार व्यक्तित्व में कुछ फिट नहीं बैठ रही थी) क्यों? निर्णय लेना, रचनात्मकता और समस्या समाधान स्किल्स क्यों नहीं हैं?

सुश्री सिंह: मेडम, मैंने एक किताब पढी थी, उसमें कुछ ऐसा कहा गया है कि स्किल वह कार्य-क्षमता होती है: १. जिसे सीधा सीखाया जा सके. जैसे मोटर चलाना, पेड़ पर चढ़ाना, गणित की विधियाँ लगाना, सारिणी बनाना, आदी. ये सब चीजें डायरेक्ट टीचिंग (सीधे इन्हीं को सिखाने) से विकसित हो सकती हैं. २. जिनमें समझ और ज्ञान आवश्यक तो होता है और उस से बहुत मदद भी मिलती है; पर स्किल उसके बिना या बहुत थोड़े से ज्ञान के आधार पर भी सीखी जा सकती है. जैसे मोटर चलाने में मोटर के इंजिन की कार्य विधि और गणित की विधि लगाने में उस के पीछे के तर्क को समझना अच्छा तो रहेगा पर जरूरी नहीं है. ३. स्किल का हम कहाँ उपयोग करें और कहाँ नहीं यह तय कर सकते हैं. हमें पेड़ पर चढ़ाना आने के बावजूद हम न चढ़ें.

अब मुझे ऐसा लग रहा है मेडम, कि निर्णय लेने के लिए तो बहुत से ज्ञान, मूल्यों और विवेकशील चिंतन की जरूरत होगी. निर्णय-क्षमता तो बहुत सी चीजें सीखने से व्यक्ती के मानसिक विकास की प्रक्रिया में विकसित होने वाली चीज है, सीधी सिखाने से क्या यह जटिल क्षमता विकसित होगी? इसी तरह रचनात्मकता और समस्या समाधान भी हैं. क्या हम इन बहुत व्यापक क्षमताओं को स्किल्स की तरह सिखा सकते हैं?

(सिंह के इस लंबे विवेचन में श्रीमती खत्री कई बार उद्विग्न और बीच में टोकने की मानसिकता में दिखी. पर सिंह की अचानक प्रस्फुटित वाग्मिता और उनके चहरे पर विचार में डूबे होने का कुछ ऐसा भाव था कि शायद श्रीमती खत्री उन्हें रोक ना सकीं.)

श्रीमती खत्री: आप ठीक कह रही हैं. मैंने भी पहले ऐसा ही पढ़ा है. पर लेटेस्ट (अद्यतन) शैक्षिक विचार में इसे स्किल की पुरानी और छोड़दी गई परिभाषा समझा जाता है. आज कल स्किल को बहुत व्यापक अर्थों में काम में लेते हैं. यही अद्यतन चिंतन है. हमें गुणवत्ता बढ़ाने के लिए लेटेस्ट थिंकिंग के साथ चलना पडेगा.

सुश्री सिंह: पर मेडम संवेदना और दोस्ती को स्किल कैसे कहें? वे तो मन के भाव या मूल्य हैं. और ऐसा तो नहीं होता की संवेदना कोई ऎसी चीज हो जिसका उपयोग कहीं पर तो करें और कहीं न करें. जो संवेदनशील है वह तो है ही, वह कोई सोचकर संवेदनशील थोड़े ही होता है की अब मझे संवेदनशीलता लानी चाहिए, वह तो आती है. बस. जो सोचकर करे उसे क्या हम संवेदनशील मानते हैं? ऐसे ही दोस्ती क्या योजनानुशार बढ़ाने की चीज है? मेडम वह तो बस हो जाती है. योजना से कुछ उद्द्येश्य के लिए दोस्ती करना तो छल होगा न मेडम?

(अब श्रीमती खत्री थोड़ी परेशान औए थोड़ी गुस्से में लगाने लगी थीं. पर सिंह तो अपनी ही रो में थी, उसने यह नहीं देखा.)

श्रीमती खत्री: मैंने कहा ना, ये सब पुरानी बातें हैं. इक्कीसवीं सदी के अद्यतन चिंतन में स्किल बहुत व्यापक अर्थ में काम में आने वाली अवधारणा है. हमें गुणवत्ता में स्किल्स की जरूरत है. और संवेदना और दोस्ती आदि का कम्पटीशन में उपगोग करना आना बहुत जरूरी है इक्कीसवीं सदी की स्किल्स में.

(सिंह अब भी उसी वैचारिक प्रवाह में थी. लग रहा था उसके के मन में बहुत कुछ चल रहा था. उसने श्रीमती खत्री की हलकी चिढ़ को शायद अनुभव ही नहीं किया.)

सुश्री सिंह: वैसे ही मेडम, इनफार्मेशन को स्किल कैसे कहें? वह तो अवधारणाओं में आपसी संबंध की समझ या ऐसा कहें बौधिक-स्थिती है. और ज्ञान का तो आपने कहीं जिक्र ही नहीं किया?

श्रीमती खत्री: सुश्री सिंह, आप बार-बार एक ही बात कह रही हैं. देखिये, मैंने कहा कि अद्यतन शैक्षिक चिंतन में स्किल बहुत व्यापक शब्द है. इस में सब समा जाता है. और ज्ञान तो काम में आने वाली इनफार्मेशन ही है ना. इस लिए आप जो ये सब भेद कर रही हैं यह ओबसोलीट (पुराने ढंग का) चिंतन है इसके सहारे आप अपने विद्यालयों की गुणवत्ता नहीं सुधार सकते.

(अब श्रीमती खत्री कुछ गुस्से में लग रही थी. चर्चा के इस मोड़ से हम सब थोड़े परेशान और थोड़े मन-ही-मन खुश थे. उपनिदेशक साहब परेशान थे. पर वे सिंह को रोकने के लिए कुछ कहें उस से पहले ही वह फिर चालू हो गई.)

सुश्री सिंह: माफ़ी चाहती हूँ मेडम, आपका कीमती समय ले रही हूँ. पर मैं कंफ्यूज हो गई हूँ. मुझे लगता है की ज्ञान, समझ, मूल्यों, भावनाओं/रुझानों, व्यापक क्षमताओं और दक्षताओं आदी सभी चीजों के लिए एक ही शब्द “स्किल” को काम में लेने से हमारा शैक्षिक चिंतन भोंथरा होगा; और उस भोंथारे चिंतन में से निकला शिक्षण-शास्त्र निष्प्रभावी, या केवल कुछ क्लासरूम ट्रिक्स. क्या संवेदना, निर्णय-क्षमता और ज्ञान का विकास हम एक ही तरीके से जैसे गुणा की अल्गोरिथम जल्दी से करदेने की तरह सिखा पायेंगे? सब कुछ को स्किल कहने से तो यही भ्रम पैदा होगा कि सबकुछ कुछ तुरत-फुरत तकनीकों से सिखाया जा सकता है?

(अब उपनिदेशक साहब इस बहस में बदलती चर्चा को रोकने का मन बना चुके थे. श्रीमती खत्री भी ‘किनारे पर’ (on the edge) लगाने लगी थीं.)

उपनिदेशक: हम यहाँ गुणवत्ता सुधारने पर टिप्स लेने आये हैं. स्किल आदी कुछ चीजों पर उलझन है तो हम श्रीमती खत्री को और लंबी कार्यशाला के लिए बुला लेंगे. अभी हमने गुणवत्ता की पूरी बात पर लौट कर आना चाहिए, उसके एक ही मुद्दे पर चर्चा के बजाय.

(सिंह बहुत संतुष्ट नहीं लग रही थी. पर चुप रही. मैंने बात को आगे बढ़ाने की कोशिश की.)

भोलानाथ: मेडम, अब मैं गुणवत्ता की समझ को एक बार फिर दोहरा कर आगे बढ़ने की इजाजत चाहता हूँ.

श्रीमती खत्री: (स्पष्ट रूप से ‘रहात-मली’ के भाव के साथ) बिलकुल भोलेनाथ जी. कहिये.

भोलानाथ: तो मेडम, मैं अभी तक यह समझा हूँ: कि गुणवत्ता अतिरिक्त जो है वह है. रिजल्ट तो अच्छा करना ही है. उसके लिए अच्छे घरों के बच्चों को लें, और बच्चों को उत्तम, अच्छा, औसत और सुधार की जरूरत में बाँट लें. और अतिरिक्त मूल्यों के रूप में प्रतिश्पर्धा, कड़ी मेहनत, कम्पनी के लिए कुछ नया और अद्वित्तीय लाना आदि बच्चों के मन में स्थापित करें. बच्चों को सफलता के लिए तैयार करने के लिए विषय-दक्षताएं, सदी-दक्षताएं और जीवन-दक्षताएं सिखाएं.

श्रीमती खत्री: आप सार-संक्षेप बहुत अच्छा करते हैं भोलानाथ जी. बिलकुल मैं सहमत हूँ, यही कहा है मैंने.

(अपनी सार-संक्षेप की क्षमता की पहचान से मुझे खुशी हुई, पर परिभाषा मन में कहीं गड़ रही थी. जैसे ही मेरी परिभाषा पूरी हुई शर्मा जी कुछ उखड़े-उखड़े से लगने लगे. परेशानी तो इस परिभाषा से श्रीमती जैन के चहरे पर भी साफ़ थी. और सुश्री सिंह तो उलझन में थीं ही.)

शर्मा जी: बातें तो आपने बढ़िया कही हैं मेडम. पर मेरी कुछ उलझन है. आप सब को ठीक लगे तो आप के सामने रखूँ.

श्रीमती खत्री: जरूर शर्मा जी. वैसे भी आप अभी तक बहुत कम ही बोले हैं. आपके विचार भी सुनें.

शर्मा जी: देखिये मेडम, मुझे ऐसा लग रहा है की गुणवत्ता को इस तरह देखने के पीछे कुछ मान्यताएं हैं. जैसे, कि दुनिया बदल रही है, इस सदी में दुनिया का स्वरुप अधिका-धिक अर्थतंत्र से तय होने वाला है. लोग इस अर्थतंत्र संचालित दुनिया में अपना स्थान बनायें, इस के विकास में बढ़-चढ़ कर भागीदारी करें; इसी में मानवता का कल्याण निहित है. इसी से दुनिया में रहन-सहन का स्तर बेहतर होगा; सुख-शांति होगी. इस अर्थतंत्र संचालित दुनिया में लोगों को संसाधन के रूप में तैयार करना यानी ह्यूमन-रिसोर्स डेवेलप करना ही शिक्षा का काम है. जो इसमें दक्ष होंगे वे ऊंचे पदों और लाभ की नौकरियों में जायेंगे. इसके लिए जिन दक्षताओं, मूल्यों और मानसिकता की जरूरत है वही शिक्षा का उद्द्येश्य है और उसी में आगे बढ़ना गुणवत्ता का बढ़ना है.

श्रीमती खत्री: (कुछ उलझन के साथ) हाँ, पर इसमें एथिक्स की भी बहुत जरूरत है.

शर्मा जी: ठीक कहा आपने. और एथिक्स माने अपने काम के प्रती प्रतीबध्दता, ईमानदारी से प्रोडक्ट की गुणवत्ता सुधारना, साथियों के साथ मित्रता रखना, ग्राहक की संतुष्टी के लिए कौशिश करना, आदी.

(सब को लग रहा था कुछ चक्कर है. पर कोई कुछ बोला नहीं. अब शर्मा जी विचार की रो में लगने लगे थे. सरकारी अध्यापकों की यही समस्या है—एक रो से निकला तो दूसरा रो में आने को तैयार. श्रीमती जैन और सुश्री सिंह भी लगरहा था गहरे सोच में हैं. शर्मा जी चालू रहे.)

शर्मा जी: पर मेडम हमें तो यह भी पढ़ाया गया है, बहुत से शिक्षा संबंधी दस्तावेजों और नीतियों के माध्यम से, कि शिक्षा का उद्येश्य व्यक्ती की स्वयं सोचने और काम करने की काबिलियत विकसित करना है. जिस से वह संवेदनशील बनकर सामाजिक न्याय, बराबरी, स्वतन्त्रता और समृद्धी के लिए प्रयत्न कर सके. वह संसाधन मात्र ना बन कर राजनैतिक, आर्थिक और सामजिक व्यवस्था का समालोचक और उस को चुनौती दे कर बदलने की कोशिश कर सके. पर यह तो अर्थतंत्र संचालित दुनिया में सफलता से कहीं अधिक लगता है मेडम. और दोनों में मुझे बहुत विरोध भी लग रहा है. जैसे यहाँ मूल्य समानता, न्याय, स्वतन्त्रता आदी होजाएंगे. यहाँ दक्षताओं के स्थान पर विवेक और ज्ञान का विकास अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगा. यहाँ एथिक्स बदल जायेगी, मेडम.

(अब श्रीमती खत्री निश्चित रूप से परेशान लग रही थीं.)

श्रीमती खत्री: देखिये मैं इन सब बातों का विरोध या अनदेखी नहीं कर रही थी. पर ये बड़ी-बड़ी बातें हैं. आज जब हमारे बच्चे पढ़ना-लिखना तक नहीं सीख पा रहे, जब अर्थव्यवस्था में दक्ष कर्मचारियों की बेहद जरूरत है, जब हम देख रहे हैं की मनजमेंट में दक्ष भारतीय बहुत-सी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ हैं; ऎसी स्थिती में हमें उन चीजों पर ध्यान देना चाहिए जो हमें आगे बढ़ा सकती हैं. और वही गुणवत्ता होगी. निजी स्कूल्स वही कर रही हैं; और सरकारी स्कूलों से इसी लिए गुणवत्ता में आगे हैं. आप जो बातें कर रहे हैं वे तो राजनैतिक बातें हैं; हम पिछले ६० साल से कर रहे हैं. देखिये हमारी शिक्षा की गुणवत्ता का क्या हाल हुआ है.

(समय बहुत कम बचा था. हमें बाद में पता चला की साढ़े आठ बजे सचिव महोदय सपत्नीक श्रीमती खत्री के साथ डिनर के लिए आने वाले थे. पर शायद उपनिदेशक साहब को पता था.)

उपनिदेशक: हमें शिक्षा की गुणवत्ता में वे चीजें भी शामिल करनी चाहियें जो मेडम ने बताई हैं. हमारी अपनी परिभाषा तो है ही. (श्रीमती खत्री की तरफ मुखातिब होकर) मेडम, आज की बात अधूरी रह गई. यह बात तो हुई ही नहीं की गुणवत्ता बढाने के लिए हम स्कूलों में क्या-क्या करें. क्या आप कल शाम को इसी वक्ता (अर्थात ६ बजे) हमें कुछ और समय दे सकती हैं?

श्रीमती खत्री: जी आप को उपयोगी लग रही है बात-चीत तो जरूर. कल मेरी मीटिंग लंच के बाद खत्म हो जायेगी. मैं शोपिंग आदी भी ५ बजे तक कर लुंगी. मुझे परशों सुबह की फ्लाइट से जाना है. तो आप कल जरूर आइये.

(हम सबने श्रीमती खत्री को आज के लिए और कल भी समय देने के लिए धन्यवाद दिया. यह उनकी शिक्षा की गुणवत्ता के प्रती लगन का परिचायक था. और इसके बाद हम सब ने विदा ली.)

[जारी. गुणवत्ता विकास के लिए विद्यालय में क्या करें, विषय पर चर्चा.]

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